तालपुरी इंटरनेशनल कॉलोनी के नाम में ही इंटरनेशनल सम्मिलित है। इसके बावजूद यहाँ के निवासियों का बौद्धिक स्तर अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के समकक्ष नहीं पहुँच पा रहा है। वो आज भी पानी, लिफ्ट, सफाई, सुरक्षा जैसी महत्वहीन समस्याओं को लेकर हाउसिंग सोसाइटी, नगर पालिक निगम, छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड, जनशिकायत पोर्टल इत्यादि के माध्यम से शिकायत दर्ज कराते रहते हैं। तालपुरी निवासियों को को इतना तो ज्ञान होना ही चाहिये कि इंटरनेशनल कॉलोनी की समस्याओं के समाधान की ज़िम्मेदारी स्थानीय शासन की नहीं अपितु संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की होती है।
लोग पहुंच जाते हैं समस्या लेकर हाउसिंग सोसाइटी के पास। सोसाइटी इस लिये बना रखी है क्या?
वो तो रिटायर हो गये थे, टाइमपास नहीं हो रहा था, तो सोसायटी बना ली। जब नौकरी में थे तब भी किसी काम के नहीं थे और न ही कोई इज्जत थी, तो रिटायरमेंट के बाद क्या खाक इज्जत होती? तो बना ली हाउसिंग सोसायटी। सोचा था सीनियर सिटीजन बैठकर गप्पबाजी करेंगे, बहू-बेटों का रोना रोएंगे और दूधवाले-अख़बारवाले जैसे चार लोग नमस्कार भी करेंगे। वो तो सोसायटी बनाने के बाद पता चला कि यहाँ काम भी करना पड़ता है। अब लिफ्ट महीने भर से नहीं चल रही है तो हम क्या करें। हम तो यह भी नहीं जानते कि हाउसिंग सोसायटी चलाना कैसे है? लोगों से मासिक मेंटेनेंस राशि मांगने जाते हैं तो दुत्कार कर भगा देते हैं। हमें तो यह भी नहीं पता कि इस परिस्थिति में लीगल नोटिस भेजना भी पड़ता है। हम तो यह भी नहीं जानते कि लीगल में एल के बाद “आई” लगता है या “ई” लगता है।
ऐसा नहीं है कि सोसायटी ने कुछ नहीं किया आज तक। हम रोज चार-छह फालतू-निकम्मे इकठ्ठे होकर सोसायटी ऑफिस में घंटों गप्प मारते हैं। वास्तव में सोसायटी बनी ही इसलिये है कि जिनके घरवाले उन्हें नकारा समझते हैं वो हमारी शरण में आ जायें। अब तो यहां भी जीना मुश्किल हो गया है। घर में बीवी-बच्चे जीने नहीं देते और यहां सोसायटी ऑफिस में बैठो तो लोग पानी-बिजली-पार्किंग का रोना रोते हैं।
सोसायटी कुछ नहीं करती तो लोग मुंह उठाकर हाउसिंग बोर्ड के समक्ष चले आते हैं। हाउसिंग बोर्ड की तो टैग लाइन ही है हम मकान नहीं घर बनाते हैं। अब घर बनाया है तो घरेलू समस्यायें तो रहेंगी ही। इंटरनेशनल कालोनी में वर्ल्ड क्लास सुविधायें चाहिये तो काम भी वर्ल्ड क्लास बिल्डर्स से कराना चाहिये। अब हाउसिंग बोर्ड के द्वारा निर्मित आधे से ज्यादा मकान तो बिना बिके खुद ही खंडहर बनते जा रहे हैं। हम किस-किस का ख्याल रखें। वैसे भी हाउसिंग बोर्ड मकान रहने के लिये नहीं अपने एवं सरकार के टारगेट पूरा करने के लिये बनाता है।
कई राज्यों की सरकारों ने अपने आप को आधुनिक दिखाने के चक्कर में जनशिकायतों के समाधान के लिये ऑनलाइन पोर्टल शुरू कर रखा था, तो देखा-देखी हमने भी शुरू कर दिया। हमने सोचा था कि पिछड़ा राज्य है लोग क्या समझेंगे ऑनलाइन-ऑफलाइन। दिखावे के लिये वैबसाइट डिजाइन करवा रखी थी। अब लोग सचमुच में शिकायत भेज रहे हैं। शिकायत भेजी तो भेजी, अब समाधान कि आस भी लगा रहे हैं।
हम तो ऑनलाइन शिकायतों के समाधान के लिये पूर्णतः वैज्ञानिक (लगभग मनोवैज्ञानिक) पद्धति अपनाते हैं। पहले तो एक-डेढ़ महीने खुद होल्ड करके बैठ जाते हैं। फिर समस्या को संबन्धित विभाग को फॉरवर्ड करने की नौटंकी करते हैं एवं इसका मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करते हैं। अब संबन्धित विभाग तीन-चार महीने के लिये शिकायत पर कुंडली मारकर बैठ जाता है। इस दौरान या तो शिकायतकर्ता समस्या का समाधान खुद ढूंढ लेता है या उसे समस्या के साथ जीने की आदत पड़ जाती है। इसके बावजूद भी शिकायतकर्ता नहीं मान रहा है तो कुछ रटे-रटाये वाक्य लिखकर शिकायत बंद कर देते हैं जैसे – प्रकरण हमारे क्षेत्राधिकार से संबन्धित नहीं है, मुआयना किया गया ऐसी कोई समस्या ही नहीं है, अनुमोदन के अनुसार कार्य हुआ है, संबन्धित को सूचित किया गया, अदालत के निर्देश के बाद ही कार्रवाई संभव है इत्यादि। प्रयास मात्र यह होता है की शिकायत भले ही बनी रहे पर शिकायतकर्ता इंतजार में निपट जाना चाहिये।
तो कृपया याद रखें, इंटरनेशनल कॉलोनी में रहेंगे तो समस्या समाधान भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही संभव है, अतः स्थानीय शासन-प्रशासन से नहीं सीधे संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) से संपर्क करें।
तथास्तु …
Author Profile
- मैं अरुण कुमार मिश्रा मूलतः भिलाई छत्तीसगढ़ से है। वर्तमान में एनटीपीसी खरगोन में बतौर हिंदी अधिकारी कार्यरत है। गोंडवाना एक्सप्रेस मीडिया के विशेष अतिथि लेखक है.
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