“मैं अकेला चलता गया, कारवां जुड़ता गया।”
सुभाष बाबू, शातिर बहरूपिया और छलिया थे। अंग्रेजो को खूब छकाए, किसके लिए आपके और मेरे लिए पर इनकी जयंती या पुण्यतिथि पर कोई अवकाश नही, ना ही इनको भारत की मुद्रा में स्थान दिया गया।
तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री इनको भारतीय समाज में फैला एक कैंसर मानते थे, जो सेना बना रहा था लोगो को आजादी के लिए युद्ध करो, राइफल चलाना आदि सीखा रहा था। कहते है कोलकाता की सड़कों पर २००० लोगो की एक छोटी सी सेना इन्होंने उतार दी थी। चर्चिल ने स्वयं कहा है कि भारत को आजादी चरखे से नही सुभाष बाबू के भारतीय ब्रिटिश फौज में विद्रोह के फैलाए कैंसर से मिली है।
इनका जीवन संघर्ष : अकेले ही बिना व्यवस्था के पदयात्रा करके अफगान से जर्मनी फिर रूस, जापान आदि तक जाना हिटलर, मुसोलनी आदि नेताओ को मिलना, आजाद हिंद फौज का गठन करना।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही सच्चे महात्मा है, जो आए बता के, भयंकर संघर्ष किए जो चरखे वाले कतई सोच भी नही सकते और ऐसे उड़न छू गायब हुए क्या बताऊं। हमको आजादी दे गए और खुद की एक एक सांस न्योछावर कर गए।
अगर आप मेरे विचारो से सहमत है तो पोस्ट शेयर करे। जय हिंद।
-प्रधान संपादक प्रियंका की कलम से
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- बिशेष दुदानी रायपुर में निवास करते है, इन्होने ने Btech IT की डिग्री की है, वेब डेवलपमेंट और पत्रकारिकता में रूचि है। दैनिक इस्पात टाइम्स रायपुर एवं रायगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार है और गोंडवाना एक्सप्रेस में सह-संपादक/प्रबंधक की भुमिका निभा रहे है।
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