
शायद 1984, सुबह के दस-साढ़े दस बजे का वक्त, भिलाई विद्यालय सेक्टर 2 का मुख्य द्वार जो भिलाई की मुख्य सड़क सेंट्रल एवेन्यू की तरफ खुलता है, वहां सैकड़ों बच्चों की भीड़, टिफिन टाइम समाप्त होने के बावजूद कोई भी स्कूल के अंदर जाने को तैयार नहीं। जब सारे प्रयास विफल हो गये तो शिक्षक खुद इस भीड़ में सम्मिलित हो गये। इस भीड़ में कहीं मैं भी था।
भिलाई स्टील प्लांट का यह रजत जयंती वर्ष था। समारोह में सम्मिलित होने पूर्व सोवियत संघ के उप सभापति वी डिमशिट्स भिलाई आये हुये थे। उन्हें कई कार्यक्रमों में सम्मिलित होना था।
भिलाई इस्पात संयंत्र सोवियत संघ के सहयोग से निर्मित था। सोवियत रूस (तब विघटन नहीं हुआ था) से कोई भी राष्ट्रप्रमुख भारत आये तो हम मान कर चलते थे कि उसे भिलाई तो आना ही है। यदि भिलाई आये तो फिर हमारे स्कूल भिलाई विद्यालय में तो आना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि सोवियत रूस के पूर्व राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव तक भिलाई विद्यालय आ चुके थे। फिर डिमशिट्स तो यहां भिलाई इस्पात संयंत्र के मेटालर्जिकल विभाग में दो वर्षों तक काम भी कर चुके हैं। पहले से जानते हैं कि भिलाई विद्यालय यहां का सबसे पुराना एवं लोकप्रिय स्कूल है। इन्हें तो रुकना ही है।
खैर तब हमें प्रोटोकॉल की समझ नहीं थी। डिमशिट्स का काफिला निकल गया एवं हमारे स्कूल में नहीं रुका।
सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति एवं नोबेल पुरस्कार विजेता मिखाइल गोर्बाचेव के निधन की खबर सुनी। यह घटना अचानक स्मरण हो आई। सोवियत संघ को लेकर तब भिलाई में क्या क्रेज हुआ करता था।
गोर्बाचेव की बदौलत मुझे रूसी भाषा के दो शब्द ग्लासनोस्त एवं पेरेस्त्रोइका आज भी याद हैं। हिंदी में इसका अर्थ खुलापन एवं पुनर्निर्माण से है। यह नीति जहां शीत युद्ध की समाप्ति का कारण बनी वहीं सोवियत रूस के विघटन का भी। सोवियत रूस जब मुक्त बाजार की ओर बढ़ा तो भारत कैसे पीछे रहता। 1991 में भारत ने भी नई आर्थिक नीति अपनाई जिसके कई फायदे हुये।
हालांकि इसी आर्थिक नीति ने आगे चलकर भिलाई सहित भारत के तमाम प्रतिष्ठित हिंदी मीडियम स्कूलों को निगल लिया। जहां तक मेरी जानकारी है आज भिलाई विद्यालय सेक्टर 2 को छोड़कर बीएसपी प्रबंधन द्वारा संचालित लगभग सारे हिंदी मीडियम स्कूल बंद हो चुके हैं।
मिखाइल गोर्बाचेव के साथ-साथ हिंदी मीडियम को भी विनम्र श्रद्धांजलि
Author Profile

- अरुण मिश्रा (अतिथि लेखक)
- मैं अरुण कुमार मिश्रा मूलतः भिलाई छत्तीसगढ़ से है। वर्तमान में एनटीपीसी खरगोन में बतौर हिंदी अधिकारी कार्यरत है। गोंडवाना एक्सप्रेस मीडिया के विशेष अतिथि लेखक है.
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