
व्यंग्य लेख : यत्र गर्दभ पूज्यते, रमन्ते तत्र … अरुण कुमार मिश्रा की कलम से
गधों में भीषण रोष व्याप्त था। हुआ यह कि कुछ तथाकथित स्वयंभू वरिष्ठ गधों ने मिलकर गर्दभाध्यक्ष का चुनाव कर लिया था एवं शेष गधों को कानों-कान खबर नहीं हुई।
गधों ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जबरदस्त चिल्लपों मचाई हुई थी। कई ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था। एक अपेक्षाकृत परिष्कृत गधे ने जिसे भ्रम था कि वो इंसान बनने की प्रक्रिया में है समझाया -"चुनने दो किसी को भी गर्दभाध्यक्ष, क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी हमारे समाज के 99 प्रतिशत गधों को तो समाज से कोई लेना देना नहीं है। इन गधों के दम पर आप कोई क्रांति तो छोड़िये, सरपंच अथवा पार्षद तक का चुनाव नहीं जीत सकते। इसके पूर्व दशकों तक जो गर्दभाध्यक्ष हुये हैं, उन्होंने ही समाज के लिये आज तक क्या किया है। वास्तव में कुछ अप्रासंगिक हो चुके लोगों ने यह संगठन बना रखा है, जहां ये घटिया स्तर की राजनीति कर किसी भी तरह से स्वयं को प्रासंगिक बनाये हुये ह...