दिनांक : 15-Apr-2024 07:31 AM
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लेखक: Arun Mishra

मैं अरुण कुमार मिश्रा मूलतः भिलाई छत्तीसगढ़ से है। वर्तमान में एनटीपीसी खरगोन में बतौर हिंदी अधिकारी कार्यरत है। गोंडवाना एक्सप्रेस मीडिया के विशेष अतिथि लेखक है.
व्यंग्य लेख : यत्र गर्दभ पूज्यते, रमन्ते तत्र … अरुण कुमार मिश्रा की कलम से

व्यंग्य लेख : यत्र गर्दभ पूज्यते, रमन्ते तत्र … अरुण कुमार मिश्रा की कलम से

Vishesh Lekh
गधों में भीषण रोष व्याप्त था। हुआ यह कि कुछ तथाकथित स्वयंभू वरिष्ठ गधों ने मिलकर गर्दभाध्यक्ष का चुनाव कर लिया था एवं शेष गधों को कानों-कान खबर नहीं हुई। गधों ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जबरदस्त चिल्लपों मचाई हुई थी। कई ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था। एक अपेक्षाकृत परिष्कृत गधे ने जिसे भ्रम था कि वो इंसान बनने की प्रक्रिया में है समझाया -"चुनने दो किसी को भी गर्दभाध्यक्ष, क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी हमारे समाज के 99 प्रतिशत गधों को तो समाज से कोई लेना देना नहीं है। इन गधों के दम पर आप कोई क्रांति तो छोड़िये, सरपंच अथवा पार्षद तक का चुनाव नहीं जीत सकते। इसके पूर्व दशकों तक जो गर्दभाध्यक्ष हुये हैं, उन्होंने ही समाज के लिये आज तक क्या किया है। वास्तव में कुछ अप्रासंगिक हो चुके लोगों ने यह संगठन बना रखा है, जहां ये घटिया स्तर की राजनीति कर किसी भी तरह से स्वयं को प्रासंगिक बनाये हुये ह...
तालपुरी इंटरनेशनल कॉलोनी – समस्या समाधान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ से संपर्क करें : अरुण मिश्रा

तालपुरी इंटरनेशनल कॉलोनी – समस्या समाधान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ से संपर्क करें : अरुण मिश्रा

Vishesh Lekh
तालपुरी इंटरनेशनल कॉलोनी के नाम में ही इंटरनेशनल सम्मिलित है। इसके बावजूद यहाँ के निवासियों का बौद्धिक स्तर अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के समकक्ष नहीं पहुँच पा रहा है। वो आज भी पानी, लिफ्ट, सफाई, सुरक्षा जैसी महत्वहीन समस्याओं को लेकर हाउसिंग सोसाइटी, नगर पालिक निगम, छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड, जनशिकायत पोर्टल इत्यादि के माध्यम से शिकायत दर्ज कराते रहते हैं। तालपुरी निवासियों को को इतना तो ज्ञान होना ही चाहिये कि इंटरनेशनल कॉलोनी की समस्याओं के समाधान की ज़िम्मेदारी स्थानीय शासन की नहीं अपितु संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की होती है। लोग पहुंच जाते हैं समस्या लेकर हाउसिंग सोसाइटी के पास। सोसाइटी इस लिये बना रखी है क्या? वो तो रिटायर हो गये थे, टाइमपास नहीं हो रहा था, तो सोसायटी बना ली। जब नौकरी में थे तब भी किसी काम के नहीं थे और न ही कोई इज्जत थी, तो रिटायरमेंट के बाद क्या खाक इज्जत होती? तो...
विशेष लेख : चिकित्सालय से बोल रहा हूँ

विशेष लेख : चिकित्सालय से बोल रहा हूँ

Vishesh Lekh
शहर की मुख्य सड़क पर सैकड़ों एकड़ के भू-भाग पर एक विशालकाय सात-आठ मंज़िला ढांचा स्थित है, लोग इसे चिकित्सालय कहते हैं। साइन-बोर्ड को देखने से पता चलता है कि यह मात्र चिकित्सालय ही नहीं अनुसंधान केंद्र भी है। हालांकि आज तक किस विषय पर अनुसंधान हुआ है एवं उससे मरीजों को क्या फायदा मिला है, यह स्वयं अनुसंधान का विषय है। यह तथाकथित चिकित्सालय पचास वर्ष से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। इसके बारे में तमाम किवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक समय था जब इसे राज्य का सर्वोत्कृष्ट चिकित्सालय माना जाता था। यह गुजरे जमाने की बात है। उस समय चिकित्सक को भगवान का दूसरा रूप समझा जाता था एवं विकल्प के अभाव में मरीज चिकित्सालय स्टाफ की हर नौटंकी, बदतमीजी एवं बेवकूफी बरदाश्त कर लेता था। किन्तु अब परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं। आज की तारीख में चिकित्सक वहाँ वेतनभोगी कर्मचारी से ज्यादा की हैसियत नहीं रखता है एवं यह ...
एममबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में – एक सार्थक पहल

एममबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में – एक सार्थक पहल

Vishesh Lekh
एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में प्रारम्भ करने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य बन रहा है। चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा हिंदी में प्रारम्भ करना निःसंदेह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था जिसे मध्यप्रदेश ने संभव कर दिखाया। तर्क-कुतर्क का दौर तो पहले भी चलता रहा है एवं आगे भी चलता रहेगा। किन्तु इस बार हिंदी कार्यान्वयन के लिये जिस इच्छाशक्ति का परिचय दिया गया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है। यह तर्क कि उच्च स्तरीय शिक्षा मात्र अंग्रेजी में संभव है, पूर्णतः आधारहीन है। जर्मनी, फ्रांस, रूस, चीन में उच्च शिक्षण पहले से ही उनकी अपनी भाषा में है एवं ये राष्ट्र शिक्षण के साथ अनुसंधान में भी बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। इस संबंध में पर्याप्त शोध हो चुके हैं कि शिक्षण यदि मातृभाषा में हो तो बच्चे ज्यादा जल्दी सीखते हैं। चूंकि हिंदी हमारी संस्कृति के ज्यादा करीब है अतः हिंदी माध्यम में शिक्षण प्रारम्भ होने से उच्च...
मिखाइल गोर्बाचेव के बहाने भिलाई : अरुण मिश्रा की कलम से

मिखाइल गोर्बाचेव के बहाने भिलाई : अरुण मिश्रा की कलम से

Bhilai, Vishesh Lekh
शायद 1984, सुबह के दस-साढ़े दस बजे का वक्त, भिलाई विद्यालय सेक्टर 2 का मुख्य द्वार जो भिलाई की मुख्य सड़क सेंट्रल एवेन्यू की तरफ खुलता है, वहां सैकड़ों बच्चों की भीड़, टिफिन टाइम समाप्त होने के बावजूद कोई भी स्कूल के अंदर जाने को तैयार नहीं। जब सारे प्रयास विफल हो गये तो शिक्षक खुद इस भीड़ में सम्मिलित हो गये। इस भीड़ में कहीं मैं भी था। भिलाई स्टील प्लांट का यह रजत जयंती वर्ष था। समारोह में सम्मिलित होने पूर्व सोवियत संघ के उप सभापति वी डिमशिट्स भिलाई आये हुये थे। उन्हें कई कार्यक्रमों में सम्मिलित होना था। भिलाई इस्पात संयंत्र सोवियत संघ के सहयोग से निर्मित था। सोवियत रूस (तब विघटन नहीं हुआ था) से कोई भी राष्ट्रप्रमुख भारत आये तो हम मान कर चलते थे कि उसे भिलाई तो आना ही है। यदि भिलाई आये तो फिर हमारे स्कूल भिलाई विद्यालय में तो आना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि सोवियत रूस के पूर्व राष्ट्रपति नि...
व्यंग्य लेख : टाटीबंध फ़्लाइओवर – अनंतकथा … अरुण मिश्रा की कलम

व्यंग्य लेख : टाटीबंध फ़्लाइओवर – अनंतकथा … अरुण मिश्रा की कलम

Vishesh Lekh
भिलाई एवं रायपुर के मध्य टाटीबंध में कोई नामालूम सा निर्माण कार्य आदिकाल से चल रहा है। विद्वान बताते हैं कि कोई फ़्लाइओवर बनाया जा रहा है। भिलाई-रायपुर के बुजुर्ग जो शतायु होने की कगार पर हैं, वो बताते हैं कि टाटीबंध में इस तरह का निर्माण कार्य उनके बाल्यकाल से चल रहा है। भविष्य में भी इसके अनंत काल तक चलने की संभावना है। तथाकथित इतिहासकार बताते हैं कि मौर्य एवं गुप्तकाल के प्राचीन शिलालेखों में भी टाटीबंध फ़्लाइओवर के निर्माण कार्य के जारी रखने का उल्लेख मिलता है। समस्त वामपंथी एवं दक्षिणपंथी इतिहासकार इस संबंध में एकमत हैं। वेदों-उपनिषदों में भी टाटीबंध फ़्लाइओवर का उल्लेख का मिलने की संभावना है, बस पर्याप्त शोध की आवश्यकता है। वर्तमान पीढ़ी ने टाटीबंध फ़्लाइओवर का केवल वर्तमान ही देखा है। उनका कहना है कि कई सरकारी इमारतें एवं पुल इस दौरान बने एवं ध्वस्त भी हो गये, उनकी जांच रिपोर्ट तक ...