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जानिए कौन था बस्तर का रियल मोगली के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध “चेंदरू द टाईगर बाय”

02/01/2023 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh, Dantewada, Tribal Area News and Welfare, Vishesh Lekh    

शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे वैसे ही बस्तर का यह लड़का शेरों के साथ खेलता था। इस लड़के का नाम था चेंदरू। चेंदरू द टायगर बाय के नाम से मशहुर चेंदरू पुरी दुनिया के लिये किसी अजुबे से कम नही था। बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहुर था। चेंदरू के जीवन का दिलचस्प पहलू था उसकी टाइगर से दोस्ती, वह भी रियल जंगल के। दोस्ती भी ऐसी कि दोनों हमेशा साथ ही रहते थे, खाना, खेलना, सोना सब साथ-साथ।

बस्तर का रियल मोगली कहलाने वाले चेंदरू ने 2013 में दुनिया को अलविदा कहा था। साठ साल पहले चेंदरु ने दुनिया भर का ध्यान खींचा था। फ्रांस, स्वीडन, ब्रिटेन और दुनिया के कोने-कोने से लोग सिर्फ उसकी एक झलक देखने को, उसकी एक तस्वीर अपने कैमरे में कैद करने को बस्तर पहुंचते थे। बस्तर की मारिया जनजाति का चेंदरु मंडावी पूरी दुनिया में टाइगर ब्वॉय और रियल मोगली के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

नारायणपुर का रहने वाला था चन्दरु

चेंदरू मंडावी नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था। मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था। बचपन में एक बार दादा ने जंगल से शेर के शावक को लाकर दिया। चेंदरू ने उसका नाम टेंबू रखा था। इन दोनो की पक्की दोस्ती थी। दोनो साथ मे ही खाते, घुमते और खेलते थे। इन दोनो की दोस्ती की जानकारी धीरे धीरे पुरी दुनिया में फैल गयी। स्वीडन के ऑस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ चेंदरू पर फिल्म बनाने की सोची और पूरी तैयारी के साथ बस्तर पहुंच गए।

घने जंगलो से घिरा घनघोर अबूझमाड़ का बस्तर का दौरा करते स्वीडिश डायरेक्टर अर्ने सक्सडोर्फ़(Arne Sucksdorff) की नजर इस बच्चे पर पड़ी। जंगल में शेरों के साथ सहज दोस्ती डायरेक्टर को इतनी भा गई कि उनसे रहा नहीं गया। फिर तैयार हुआ एक फिल्म “द जंगल सागा” जिसमे लीड रोल पर था बस्तर का “टाइगर ब्वाय” चेंदरू।

फिल्म के रिलीज़ होते ही चेंदरू रातोंरात हालीवुड स्टार बन गया था

देश विदेश में बस्तर को पहचान दिलाने वाले चेंदरु पर 1957 में ‘एन द जंगल सागा (En djungelsaga)’ इंग्लिश में: द फ्लूट एंड द एरो (The Flute and the Arrow)नाम की स्वीडिश फिल्म बनी थी, उसके दोस्त टाइग़र के साथ उसकी दोस्ती के बारे में दिखाया गया था। चेंदरू ने ही इस फिल्म के हीरो का रोल किया और यहां रहकर दो साल में शूटिंग पूरी की। इस फिल्म ने उसे दुनिया भर में मशहूर कर दिया। इस फ़िल्म में रविशंकर ने संगीत दिया था, रविशंकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत थे और उस समय उन्हें चेंदरू के संगीतकार के तौर पर जाना जाता था।

1957 में चेंदरू ने 75 मिनट की मूवी “एन द जंगल सागा”, जब पुरे यूरोपीय देशों के सेल्युलाईड परदे पर चली तो लोग चेंदरू के दीवाने हो गए, चेंदरू रातोंरात हालीवुड स्टार हो गया। स्वीडन में चेंदरू कुछ सालों तक डायरेक्टर के घर पर ही रुका रहा।

डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ चेंदरू को गोद लेना चाहते थे

चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड बर्गमैन सक्सडॉर्फ (Astrid Bergman Sucksdorff) से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया। एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर के साथ-साथ लेखिका भी थी। फ़िल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और उन्होंने चेंदरु पर ‘ब्वाय एंड द टाइगर (Chendru: The Boy and the Tiger)’ नाम की एक किताब भी लिखी थी।

उसके बाद चन्दरु वापिस भारत आ गए, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी ने चेंदरू को मुंबई रुकने की सलाह दी। पर भीड़भाड की जिंदगी से दूर और पिता के बुलावे पर चेंदरू वापिस अपने घर बस्तर आ गया।

गुमनामी और अभावों में गुजारी ज़िन्दगी

चकाचौंध ग्लैमर में जीने का आदी हो चुका चेंदरू गांव में गुमसुम सा रहता था। जहाँ फिर उनकी जिंदगी अभावो से गुजरती हुई बीती। जब किशोर उम्र के चेंदरू विदेश से वापस गांव आए तो फिर उनके सामने ज़मीनी सच्चाई थी। समय के साथ चेंदरू नारायणपुर और बस्तर के जंगल में गुम होते चले गए। चेंदरू जब विदेश से लौटे तो कई साल तक वे गांव के लोगों से अलग-थलग रहे।

एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के दुनिया में पुरी तरह से खो गया था जिसे कुछ पत्रकारों ने पुन 90 के दशक में खोज निकाला। फिल्म में काम करने के बदले उसे दो रूपये की रोजी ही मिलती थी। सन 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी।

चेंदरू बेहद खुशमिज़ाज किस्म के इंसान थे

किसी भी दूसरे मुरिया आदिवासी की तरह चेंदरू बेहद खुशमिज़ाज और बहुत सारी चीज़ों की परवाह न करने वाले हैं। लेकिन चेंदरू के सामने उनका अतीत आकर खड़ा हो जाता है, एक सपने की तरह, शायद इससे वे मुक्त नहीं हो पाए।
चेंदरू के बेटे जयराम मंडावी के अनुसार अगर उनके पिता को आर्थिक मदद मिलती, तो शायद उनकी हालत ऐसी नहीं होती। जयराम कहते हैं, “जब पिताजी बीमार पड़े तो एक जापानी महिला ने डेढ़ लाख रुपए की मदद की। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने 25 हज़ार रुपए दिए लेकिन इससे पहले और इसके बाद किसी ने हमें पूछा तक नहीं।

बस्तर की इस प्रतिभाशाली गौरवगाथा की याद में छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर के जंगल सफारी में चेंदरू का स्मारक बना कर सच्ची श्रद्धान्जली दी है।

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
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