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राज्यपाल अनुसुइया उइके : देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास

30/06/2021 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh    

आज जो हम खुली हवा में जो सांस ले रहे हैं, आजादी के महान नायकों के बलिदान के फलस्वरूप हो पाया है। हमें इसकी कीमत समझनी चाहिए। हर नागरिक को राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव से कार्य करना चाहिए और देश को विघटित करने का प्रयास करने वाले तत्वों से सचेत रहना चाहिए। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज जनजाति कल्याण केन्द्र महाकोशल, बरगांव द्वारा ‘‘स्वतंत्रता आंदोलन एवं जनजातीय समाज’’ विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कही।

राज्यपाल जनजाति कल्याण केन्द्र महाकोशल द्वारा ‘‘स्वतंत्रता आंदोलन एवं जनजातीय समाज’’ विषय पर आयोजित वेबिनार में शामिल हुई

राज्यपाल ने कहा कि देश की आजादी में जनजातियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। सन 1857 से पहले स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी तक अंग्रेजों के खिलाफ लगातार संघर्षों का दौर जारी रहा। स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्व ही अंग्रेजों के खिलाफ जनजातियों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा कि हमारे जनजातीय समाज ने स्वतंत्रता आंदोलन में जो बलिदान दिया है उसकी जानकारी नई पीढ़ी को देने की आवश्यकता है, ताकि वे उनके पदचिन्हों में चलकर समाज को नई दिशा प्रदान करे और देश की प्रगति में योगदान दे। राज्यपाल ने सुझाव दिया कि समाज के प्रबुद्ध वर्ग विकासखण्ड स्तर पर, ग्राम पंचायत स्तर पर एक अभियान चलाकर समाज के लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समाज के योगदान की जानकारी दें ताकि समाज को आत्म गौरव का अनुभव हो।

सुश्री उइके ने कहा कि जनजातीय पुरातन काल से वनों में निवास करते रहे हैं। उन्हें प्राकृतिक संपदा की अच्छी जानकारी भी है, इसलिए वे प्रकृति के अनुकुल जीवन जीते हैं, चूंकि प्रकृति से अनन्य संबंध होने के कारण वे जल, जंगल जमीन पर अपना अधिकार समझते रहे। बाद में ब्रिटिश शासन के आने के पश्चात वन कानूनों के माध्यम से उनके क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जाने लगा। इसके पीछे भी ब्रिटिश शासनों की मंशा उन जंगलों में छिपी अकुत संपदा थी। उन्हें हथियाने के लिए कानूनों का सहारा लिया। इसे आदिवासियों ने अपने जीवन में हस्तक्षेप समझा और उन्होंने उसके खिलाफ आवाज बुलंद की।

उन्होंने कहा कि यदि हम आदिवासियों की प्रमुख आंदोलनों की बात करें तो सन् 1780 से सन् 1857 तक आदिवासियों ने अनेकों स्वतंत्रता आन्दोलन किए। सन् 1780 का “दामिन विद्रोह” जो तिलका मांझी ने चलाया, सन् 1855 का “सिहू कान्हू विद्रोह”, सन् 1828 से 1832 तक बुधू भगत द्वारा चलाया गया “लरका आन्दोलन” बहुत प्रसिद्ध आदिवासी आन्दोलन हैं। यहां पर बिरसा मुण्डा का जिक्र करना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने न ही शोषण के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि आदिवासियों के सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सुश्री उइके ने कहा कि आदिवासी युग पुरूष बिरसा मुण्डा सन् 1900 में शहीद हुए। मध्य प्रदेश के निमाड़ में हुए विद्रोह के नायक भील तांतिया उर्फ टंटिया मामा ने क्रांति की लहर पैदा की। हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक चरण में वीर नारायण सिंह का नाम उल्लेखनीय है, जो प्रथम शहीद भी माने जाते हैं। इसके साथ ही गुण्डाधुर, कंगला मांझी, गैंदसिंह जैसे अनेकों नायक हुए, जिन्होंने देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी। निःसंदेह स्वतंत्रता आन्दोलन में आदिवासियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने आदिवासी समाज से आग्रह किया कि समाज को जागरूक करें ताकि देश की प्रगति में अधिक से अधिक योगदान दे सकें।

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
"जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।