बाली तो सुग्रीव से अधिक बलवान था किन्तु भगवान राम ने उसका साथ नहीं लिया,व्यंजन तो दुर्योधन ने विविध बना रखे थे और निमंत्रण भी वहीं से था किन्तु भगवान कृष्ण साग-रोटी खाने विदुर के घर चले गए और वह भी बिना निमंत्रण के !
सीताहरण के बाद भगवान राम चाहते तो अयोध्या और मिथिला से सेना बुला सकते थे किन्तु वन के नर अर्थात वानर और भालू की सहायता से असम्भव को सम्भव करना सिखा दिया !
सीताजी ने,जो राजा की पुत्री और राजा की ही पुत्रवधु थीं,ने हनुमान जी से तो प्रत्यक्ष वार्तालाप किया किन्तु दुराचारी रावण से तिनके की ओट से प्रत्युत्तर दिया !
लक्ष्मण जी और भरत जी ने तो कर्तव्य और धर्म का उत्कर्ष ही जगत के समक्ष रख दिया !
जटायु ने परिणाम जानते हुए भी धर्म के पालन में धर्मपथ से विचलित हुए बिना अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी और अतुलित बलशाली हनुमान जी ने तो भक्ति का वेद ही रच डाला !
इस प्रकार भगवान और उनकी लीला में उनके ही विभिन्न विग्रहों ने हमारे समक्ष व्यवहार का,कर्तव्य का,प्रेम का,मित्रता का और धर्म का आदर्श रखा है !!
एक-एक सम्बन्ध और एक-एक क्षेत्र में धर्ममार्ग का भगवान ने दिग्दर्शन किया है !
इसलिए राम,कृष्ण,शिव,जगदम्बा तो भारत के श्वास-प्रश्वास में समाये हमारी धर्म-संस्कृति की धड़कन हैं,हमारे पल-पल के स्पंदन हैं !
तभी तो आज भी गाँवों में जब किसान अनाज तौलते हैं तब एक,दो,तीन,चार आदि नहीं बोलते अपितु एक के स्थान पर राम को रखते हुए राम,दो,तीन,चार आदि ही बोलते हैं।
इसीलिए हमारी परिवार-व्यवस्था का आदर्श ही राम और सीता हैं !
सास और ससुर का आदर्श महारानी कौशल्या और महाराज दशरथ हैं !
देवर के आदर्श भरत,लक्ष्मण और शत्रुघ्न हैं तो देवरानी की आदर्श उर्मिला,मांडवी और श्रुतकीर्ति हैं !
मित्र केवट और माता सबरी तो प्रेम की और भक्ति की गंगा ही हैं !
भगवान राम अथवा कृष्ण अथवा उनके अवतार तो हमारे आदर्श हैं ही और इनमें भी उनका रामरूप तो मर्यादा का अवतार है, मर्यादापुरुषोत्तम !!!
आइए दीपावली के अवसर पर हम आनंद-उत्सव मनाएँ,हर्षोल्लास के साथ मनाएँ लेकिन पटाखों के शोर में हम मर्यादा की मर्यादा न भूल जाएँ अन्यथा छोड़े गये रॉकेट और अनार की तरह हमारा मूल्यविहीन अमर्यादित समाज भी प्रभु राम को भूल जाने के कारण जल कर लंका बन जायेगा !!
दिवाली वैभव की पूजा या प्रदर्शन नहीं है यह तो भगवान राम,भगवती सीता और रामाधार भ्राता लक्ष्मण के अयोध्या पुनरागमन का पर्व है सो इसमें सीता अर्थात लक्ष्मी हैं तो राम अर्थात विष्णु भी हैं।
बिना हरि के लक्ष्मी तो खारे समुद्र में ही निवास करती थीं ; जब हरि ने धारण किया तभी खारे सागर से क्षीर सागर में आयीं !!
सो बिना लक्ष्मीकान्त के लक्ष्मी कैसी !
अतः सुन्दर दिवाली, सुरक्षित दिवाली, मर्यादा की दिवाली,प्रेम और सौहार्द्र की दिवाली, कोई पड़ोसी या प्राणी तक भूखा अथवा कोई कष्ट या मन में कोई दुःख लेकर न सो जाये— ऐसी दिवाली !!
दीपवाली साथ-साथ आ रहे गुरु नानक जी के प्रकाश पर्व की भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और साथ में मिठाई भी आप सभी मित्रों को !
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिददुःखभाग्भवेत !
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- "जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।
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