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राजा प्रवीर चंद्र भंज देव: छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का वो मसीहा जो राजनीति की भेट चढ़ गया – II

07/01/2023 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh, Tribal Area News and Welfare, Vishesh Lekh    

राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष किया। वे आजाद भारत से बहुत उम्मीद रखने वाले रौशनख्याल राजा थे। उन्हें लगता था कि आजाद भारत में आदिवासियों का शोषण अंग्रेजों की तरह नहीं होगा। वे मानते थे कि आदिवासियों को उनकी जमीन पर बहाल करना अब आसान होगा। साथ ही आदिवासियों को भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त होगा। एक तरह से वे आजादी को बस्तर के पूर्ण विकास के लिए एक बेहतरीन अवसर के रूप में देखते थे। नए रंग और देश की आजादी व रियासतों के विलय से बस्तर नरेश और काकतीय वंश के अंतिम राजा प्रवीर चंद भंजदेव बहुत आशान्वित थे।

प्रवीर के सामाजिक जीवन की पहली झलक मिलती है सन 1950  में जगदलपुर राजमहल परिसर में आयोजित मध्यप्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मलेन में, जिसमे उन्होंने आदिवासी समाज, उनकी शिक्षा और विकास को लेकर अपने विचार रखे थे। उनके भाषण के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक है क्योकि यही से प्रवीर के विचार और दृष्टिकोण का पता चलता है। प्रवीर के शब्द उन्ही के सन्दर्भ में,

” मुझे इस हिंदी साहित्य सम्मलेन में और हिंदी भाषा नहीं बोल पाने वाले आदिवासियों में परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं दीखता। किन्तु स्वागत समिति के अध्यक्ष माननीय श्री सुन्दरलाल त्रिपाठी ने जब राष्ट्रभाषा का प्रसार करने वाली समिति और हिंदी नहीं बोल पाने वाले आदिवासियों के पारस्परिक सम्बन्ध की ओर इशारा किया तो मेरी झिझक मिट गई। अंग्रेजो की नीति आदिवासियों को शेष भारत से अलग रखने की थी। किन्तु मेरा मत इसके विपरीत है क्योकि मुझे लगता है की पृथक रखने से आदिवासियों की कभी भी उन्नति नहीं हो सकती। सभ्यता और भाषा को कभी भी शून्य अर्थात गतिविहीन नहीं रख सकते। आदिवासियों को मुख्या धरा में जोड़ने के लिए सबसे आवश्यक है कि इन्हे राष्ट्रभाषा सिखाया जाये। पर इस बात का ध्यान रखा जाये कि सबसे पहले आदिवासियों के विषय में पूरी जानकारी हो। और इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि किस तरह से आदिवासियों में सभ्यता ग्रहण करने में रूचि पैदा होगी।

अमेरिका में रेड इंडियंस का अस्तित्व गोलियों से समाप्त नहीं हुआ वरन उनको शेष संसार से पृथक रखने से हुआ है। हमारे देश में आदिवासियों को पृथक रखने से न केवल उनका अस्तित्व बल्कि उनका नैतिक और शैक्षिक विकास भी नहीं होगा। दुर्भाग्य से आदिवासियों के रहन सहन के बारे में शेष विश्व को काम ही ज्ञात है। और जिनको इन आदिवासियों के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान है, उनकी किताबो में आदिवासियों का जिक्र हास्यास्पद है। अतिश्योक्ति करके या तो उनको वन देवता बना दिया या फिर उनके दुष्कृत्यो का वर्णन करके उन्हें राक्षस बना दिया गया। जबकि वास्तव में वे भी एक साधारण मनुष्य ही है। बस परिस्थितिया थोड़ी अलग है।

क्या कारण है की बस्तर में चोरिया कम और हत्याए ज्यादा होती है? तो क्या इसका अर्थ ये हुआ कि आदिवासी ईमानदार होते है, पर क्रूर है? नहीं, नहीं आदिवासी प्रारम्भ से ही समाजवादी है। अबूझमाड़ में लोग सामूहिक खेती करते है। इकट्ठे फसल बोते है, इकट्ठे कटाई करते है। फिर सामूहिक बटवारा कर लेते है। अगर कोई चोरी कर लेता है तो यह कोई व्यक्ति की चोरी नहीं, बल्कि समाज भर की चोरी हो जाती है। इसीलिए आदिवासियों के समाज में चोरी बहुत भरी और भयंकर अपराध माना जाता है। और हत्याए इसीलिए ज्यादा होती है क्योकि जंगल में कदम कदम में मौत है। रोग, आदमखोर बाघ, सांप, नदी गिरते हुए पेड़ यह सब चारो ओर जीवन को नष्ट करने पर तुले हुए है। तो इन परिस्थितियों में रहने वाले इन आदिवासियों के जीवन का क्या मूल्य हो सकता है।

आदिवासियों की आवश्यकताए बहुत थोड़ी होती है इसिलए उन्हें व्यर्थ में पसीना बहाने की जरुरत नहीं होती। मै एक उदाहरण दूंगा।

इसी जिले में मैं एक छोटा सा रास्ता तैयार करवाना चाहता था। पर उस काम को करने के लिए मुझे मज़दूर नहीं मिलते थे। आसपास रहने वालो को पैसो की जरुरत ही नहीं पड़ती थी। तभी मैंने वह कपड़ो की और नमक की दुकान खुलवा दी। और नगदी से बिक्री शुरू करवाई। उनकी आवश्यकता थी कपडा और नमक; वह  नगद से और नगद मिलता था काम करने से। तब रास्ता बनाने के लिए मज़दूर आने शुरू हुए। तब कही जाकर रास्ता बन पाया।

मै आप लोगो के समक्ष एक सुझाव रखता हु कि प्राथमिक और अन्य समस्त प्रकार की शिक्षा हिंदी माध्यम में होनी चाहिए। आदिवासियों को हिंदी सीखना आवश्यक है तभी आगे की शिक्षा संभव है। साथ ही सब अध्यापको को स्थानीय भाषा आणि चाहिए। जिससे अगर किसी विद्यार्थी को हिंदी शब्द में दिक्कत हो तो उसे स्थानीय भाषा में समझाया जा सके। हिंदी पढ़ने के लिए हमारी पाठ्य पुस्तके बेकार है। इनमे हमें चित्रों की भी आवश्यकता है। प्रत्येक अक्षर को एक जानवर का चित्र लगाकर समझाया जाए और उस जानवर का नाम हिंदी, हल्बी और गोंडी में लिखा जाए।”

ये भाषण राजा प्रवीर चंद्र ने आज से लगभग 68 साल पहले दिया था। अब हम यहां एक घटना का जिक्र करते है, जिससे अंदाज़ा हो जायेगा कि ये आदिवासी वाकई कितने सरल स्वभाव के होते है।

करीब 40 साल पहले, ये बात उन दिनों की है जब विदेशियों ने घोटूल पर फिल्म बनाई थी। जो बहुत चर्चित हुई थी, कुछ अंतराल बाद मै (प्राण चाड़्ह), बस्तर को समझने रायपुर से बस्तर पहुंचा, कैमरा साथ था, नवभारत के बुद्धिजीवी पत्रकार बसन्त अवस्थी जी से पहचान थी। जो बस्तर के रास्तो को अच्छी तरह जानते थे।

एक दिन मै बसन्त अवस्थी जी के साथ घूमते हुए जा रहा था। तभी बाजार, हाट जाती हुई बस्तरिया महिलाओ का एक समूह दिखा। मैंने चुपके से फोटो लीं।

बसन्त जी किसी गुरुवर से कमतर न थे, उन्होंने मुझे कहा किसीं एक से पूरा सामान का मोल भाव कर खरीदो। ये समूह जंगल, खेत से होता हुआ पक्की सड़क से गुजरते हुए एक घने पेड़ की छांव में पानी पीने रुका था।। ज्यादा तर ये हल्बी समझती थी,पर मुझे हिंदी आती थी। फिर भी कच्चे आम की एक टोकरी का नोट दिखा कर मोल करने लगा। दस दस के छः नोट का मोल लगा दिया पर वो देने को राजी नही हुई। तब ये बड़ी रकम होती थी।

आखिर में मै हार गया, तब बसन्त जी ने बताया कोई इन्हे सौ रुपए भी दे तो ये पूरी टोकनी आम नहीं बेचेगी। और तभी सिर पर बोझ उठाये वे महिलाएं आगे बढ़ गई।

बसन्त जी आज इस दुनिया में नहीं है, पर उनकी बाते याद है। उन्होंने कहा था कि ये राह में आम बेच देगी तो हाट में क्या करेगी। आम बेचना तो बहाना है। वहां हाट में वे अपने नाते-रिश्तेदारो से मिलेगी। दुःख-सुख, रिश्ते की बात करेगी। कुछ आम उनको देगी, आम तो 20 रुपए के हैं पर मेलजोल और रिश्ते अनमोल है। इसके लिए वो हाट जा रही है। ये ही उनकी मौलिकता है।

परस्पर कितना स्नेह था इन बस्तरियों में और आज ये नक्सली और पुलिस की गोलीबारी, दूषित राजनीति में घिरे गये है। विकास की कितनी बड़ी कीमत इन्होंने चुकायी है।

महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की कहानी जारी रहेगी…

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
"जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।