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आदिवासी समाज ने राज्यपाल को दिया 10 सवालों में से 8 का जवाब, लंबित आरक्षण विधेयकों पर गवर्नर से हुई चर्चा

20/01/2023 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh, Raipur    

छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज-सोहन पोटाई गुट ने गुरुवार को राज्यपाल अनुसुईया उइके से मुलाकात की। इस दौरान राज्यपाल के पास लंबित आरक्षण विधेयकों पर बात हुई। आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने एक ज्ञापन सौंपकर राज्यपाल की ओर से पूछे गये 10 में से आठ सवालों का जवाब दिया। उन्होंने राज्यपाल से आरक्षण विधेयकों पर जल्द हस्ताक्षर करने की मांग की। उनका कहना था, विधानसभा में सर्व सम्मति से पारित विधेयकों पर राजभवन की आपत्ति एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल है। इन विधेयकों की समीक्षा का अधिकार केवल उच्च और उच्चतम न्यायालय को ही है।

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष भारत सिंह की अगुवाई में पहुंचे प्रतिनिधिमंडल का कहना था, मध्यप्रदेश से अलग कर अलग छत्तीसगढ़ के गठन का आधार ही इस क्षेत्र का पिछड़ापन और आदिवासियों के हितों की बात थी। केंद्र सरकार ने 2005 में आरक्षण नीति बनाई। जिसके आधार पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना था। लेकिन पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 2011 तक उनको इसका लाभ नहीं दिया। 2012 तक 11-12% आबादी वाले अनुसूचित जाति को 16% आरक्षण दिया जाता रहा। जबकि 32% की आबादी वाले आदिवासी समाज को केवल 20% आरक्षण मिला।

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2012 में इसे दूर किया गया। जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। अब विधानसभा ने नये विधेयक पारित किया है तो वह राजभवन में अटक गया है। इसकी वजह से आदिवासी समाज का व्यापक हित प्रभावित हो रहा है। आदिवासी समाज ने अपने ज्ञापन में राज्यपाल के विधिक सलाहकार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विरोधी मानसिकता का होने का आरोप लगाया है। ज्ञापन में राजभवन के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा गया है, संवैधानिक व्यवस्था के तहत कार्यपालिका शासनतंत्र का संचालन करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिससे सरकार का काम एक दिन भी प्रभावित न हो।

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बनी परिस्थिति में राज्य सरकार से यह पूछा जाना कि उच्च न्यायालय के निर्णय के ढाई महीने बाद ऐसी विशेष परिस्थितियों के संबंध में कोई डाटा इकट्‌ठा किया गया है-एक्स्ट्रा जूडिशियल है। यह आपत्ति प्रदेश के राजनीतिक दलों के तर्क और विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगाता है जो उन्होंने विधेयकों को पारित करते समय विधानसभा में रखे थे। ये विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुए हैं, ऐसे में इनकी विवेचना का अधिकार केवल उच्च और उच्चतम न्यायालय को ही है।

ऐसी आपत्ति के आधार पर विधेयक को लंबित रखना तर्कसंगत नहीं है। सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल में बी.एल. ठाकुर, भारत सिंह, बी. पी. एस. नेताम, आर. बी. सिंह, हीरालाल नायक, पी.आर.नायक, नरसिंह ठाकुर, एम. आर. ठाकुर, विक्रम लकड़ा, आनंद प्रकाश टोप्पो, डॉ. शंकरलाल उइके, जे. मिंज, मोहित ध्रुव, कल्याण सिंह बरिहा, गणेश ध्रुव, मनोहर ठाकुर, मदन लाल कोरपे, वेदवती मंडावी, वंदना उइके, कमलादेवी नेताम और सनमान सिंह शामिल थे।

राजभवन में अटका है नया आरक्षण विधेयक

राज्य सरकार ने आरक्षण विवाद के विधायी समाधान के लिए छत्तीसगढ़ लोक सेवाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया। शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए भी आरक्षण अधिनियम को भी संशोधित किया गया। इसमें अनुसूचित जाति को 13%, अनुसूचित जनजाति को 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण का प्रावधान किया गया। तर्क था कि अनुसूचित जाति-जनजाति को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया है। OBC का आरक्षण मंडल आयोग की सिफारिशों पर आधारित है और EWS का आरक्षण संसद के कानून के तहत है। इस व्यवस्था से आरक्षण की सीमा 76% तक पहुंच गई। विधेयक राज्यपाल अनुसूईया उइके तक पहुंचा तो उन्होंने सलाह लेने के नाम पर इसे रोक लिया। बाद में सरकार से सवाल किया। एक महीने बाद भी उन विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। ऐसे में उनको लागू नहीं किया जा सकेगा।

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है

19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।
14 दिसम्बर को राज्यपाल ने सरकार से 10 सवाल पूछे। कहा, इसका जवाब आए बिना विधेयकों पर निर्णय लेना संभव नहीं।
10 दिन बाद सरकार ने राजभवन को जवाब भेज दिया।
राजभवन ने उस जवाब को नाकाफी बताया, कहा – उनके सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया। क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रपट नहीं दी गई।
3 जनवरी को कांग्रेस ने राज्यपाल के हठ के विरोध में रायपुर में बड़ी रैली कर चुनौती दी।
राज्यपाल अब भी कानूनी सलाह की बात कर रही है

गुरुवार को सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान हुई बातचीत में राज्यपाल अनुसूईया उइके ने कहा, वे राज्य में आदिवासियों के अधिकारों को लेकर निरंतर कार्य कर रहीं हैं। वे आदिवासियों के साथ सभी के हितों के संरक्षण के लिए हरसंभव प्रयास करेंगी। विधेयकों पर हस्ताक्षर की बावत उन्होंने कहा, उसका परीक्षण करा रही है। कानूनी सलाह के बाद ही उसपर कोई फैसला करेंगी।

 

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
"जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।