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धर्म-उपासना: सूर्य की उपासना का पर्व है मकर संक्रांति

14/01/2023 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh, Raipur, Various    

मकर संक्रांति सूर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन सूर्य भूमध्य रेखा को पार करके उत्तर की ओर अर्थात मकर रेखा की ओर बढ़ना शुरू करते हैं। इसी को सूर्य का उत्तरायण स्वरूप कहते हैं। इससे पहले वह दक्षिणायन होते हैं। सूर्य की उपासना के लिए उत्तरायण पर्व यानी मकर संक्रांति मनाई जाती है।

सूर्य प्रत्यक्ष द्रष्टिगोचर होने वाले एक मात्र देवता हैं। इसीलिए मकर संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा कर उनसे ऊर्जा प्राप्त करने का विशेष महत्त्व है। सूर्य पूजा का प्रचलन रामायण काल से चला आ रहा है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख रामकथा में मिलता है। सूर्यवंशी श्रीराम के पूर्व मार्तण्ड थे। राजा भगीरथ भी सूर्यवंशी थे, जिन्होंने तप-साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था।

कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह दिन मकर संक्रांति का ही था। पावन गंगाजल के स्पर्शमात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल-अक्षत-तिल से श्राद्ध-तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध-तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण के सूर्य को मोक्षदाता बताया है।

वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मान्यता है कि इस दिन पुण्य आत्माएँ ही स्वर्ग में प्रवेश करती हैं, इसलिए यह आलोक का पर्व है। हमारे ऋषि इस अवसर को अत्यंत शुभ और पवित्र मानते थे। उपनिषदों में इसे ‘देवदान’ कहा गया है। शिव, विष्णु और उनके अवतार, गणपति, आद्यशक्ति के साथ सूर्य की पूजा, उपासना, आराधना और जप से जापक को लौकिक-पारलौकिक, नैतिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं। मकर संक्रांति का संदेश है कि सूर्य की ही तरह हमें अपना आत्म तज विकसित करना चाहिए, ताकि निराश जनों के मन में भी उत्साह और आनंद भर सकें। मनुष्य के जैसे कर्म, चिंतन और संस्कार होते हैं, वैसी ही उसकी गति होती है। उन्नत कर्म, अच्छी संगति और उच्च चिंतन ही मानव को प्रगति के पथ पर अग्रसर करते हैं। सूर्य से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें विकारों से मुक्त करें।

पिता सूर्य अपनी पत्नी छाया के पुत्र शनि के घर गए हैं- वसंत संपात आरंभ!
जब पृथ्वी रूपी गाय चित्रा नक्षत्र में चरेगी, मधु से भर जाएगी, वसंत ऋतु आएगी, मधुमास आएगा।
नए- नए पत्ते निकलेंगे! फूल खिलेंगे, भौंरे गूंजार करेंगे।
यह है मकर संक्रांति का फल।

– प्रमोद दुबे

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