
छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर। पहाड़ों से घिरे होने के कारण इसे पहले डोंगरी और अब डोंगरगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां ऊंची चोटी पर विराजित बगलामुखी मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। हजार से ज्यादा सीढिय़ां चढ़कर हर दिन मां के दर्शन के लिए वैसे तो देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है। जो ऊपर नहीं चढ़ पाते उनके लिए मां का एक मंदिर पहाड़ी के नीचे भी है जिसे छोटी बम्लेश्वरी मां के रूप में पूजा जाता है। अब मां के मंदिर में जाने के लिए रोप वे भी लगाया गया है।
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ऊपर वाली बम्लेश्वरी माता |
लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व इसे कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। यहाँ राजा वीरसेन का शासन था। वे नि:संतान थे। संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।
मदनसेन के बाद उसके पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली। कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात् कामाख्या नगरी में कामकंदला नाम की राज नर्तकी थी। वह नृत्यकला में निपुण और अप्रतिम सुन्दरी थी। उसकी सुंदरता और नृत्य कुशलता के चर्चे दूर-दूर तक थे।
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नीचे वाली बम्लेश्वरी माता |
एक बार राज दरबार में कामकंदला का नृत्य हो रहा था। उसी समय माधवानल नाम का एक संगीतज्ञ राजदरबार के समीप से गुजरा और संगीत में खो गया। संगीत प्रेमी होने के कारण माधवानल ने दरबार में प्रवेश करना चाहा, लेकिन दरबारी ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। माधवानल बाहर ही बैठकर तबले और घुंघरू का आनंद लेने लगा।
माधवानल को लगा कि तबला वादक का बायां अंगूठा नकली है और नर्तकी के पैरों में बंधे घुंघरू के एक घुंघरू में कंकड़ नहीं है। इससे ताल में अशुद्धि आ रही है। वह बोल पड़ा- ‘मैं व्यर्थ में यहां चला आया। यहां के राज दरबार में ऐसा एक भी संगीतज्ञ नहीं है, जिसे ताल की सही पहचान हो और अशुद्धियों को पकड़ सके।’
द्वारपाल ने उस अजनबी से अपने राजा और राज दरबार के बारे में ऐसा सुना तो उसे तत्काल रोका। वह तुरंत राज दरबार में गया और राजा को सारी बात सुनाई। तभी राजा की आज्ञा पाकर द्वारपाल उन्हें सादर राज दरबार में ले गया। उनके कथन की पुष्टि होने पर उन्हें संगत का मौका दिया गया। उनकी संगत में कामकंदला नृत्य करने लगी। ऐसा लग रहा था मानो राग-रागनियों का अद्भुत संगम हो रहा हो। तभी अचानक एक भौंरा कामकंदला के वक्ष पर आकर बैठ गया। थोड़े समय के लिए कामकंदला का ध्यान बंटा जरूर, मगर नृत्य चातुर्य से उसने भौंरे को उड़ा दिया। इस क्रिया को कोई नहीं देख पाया, मगर माधवानल देख रहा था। इस घटना ने माधवानल को कामकंदला का दीवाना बना दिया। दोनों में प्रेम हो गया जो राजकुमार मदनादित्य को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
मदनादित्य ने कामकन्दला को राजद्रोह के आरोप मे बंदी बनाया उधर माधवनल को पकडने सिपाहियो को भेजा। सिपाहियो को आते देख माधवनल पहाडी से निकल भागा और उज्जैन जा पहुचां। उस समय उज्जैन मे राजा विक्रमादित्य का शासन था जो बहुत ही प्रतापी और दयावान राजा थे। माधवनल की करूण कथा सुन उन्होने माधवनल की सहायता करने की सोच अपनी सेना कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। कई दिनो के घनघोर युध्द के बाद विक्रमादित्य विजयी हुए एवं मदनादित्य माधवनल के हाथो मारा गया। घनघोर युध्द से वैभवशाली कामाख्या नगरी पूर्णतः ध्वस्त हो गई।
चारो ओर शेष डोंगर ही बचे रहे तथा इस प्रकार डुंगराज्य नगर पृष्टभुमि तैयार हुई। युध्द के पश्चात विक्रमादित्य द्वारा कामकन्दला एवं माधवनल की प्रेम परिक्षा लेने हेतु जब यह मिथ्या सूचना फैलाई गई कि युध्द मे माधवनल वीरगति को प्राप्त हुआ तो कामकन्दला ने ताल मे कूदकर प्राणोत्सर्ग कर दिया। वह तालाब आज भी कामकन्दला के नाम से विख्यात है। उधर कामकन्दला के आत्मोत्सर्ग से माधवनल ने भी अपने प्राण त्याग दिये। अपना प्रयोजन सिध्द होते ना देख राजा विक्रमादित्य ने माँ बम्लेश्वरी देवी (बगुलामुखी) की आराधना की और अतंतः प्राणोत्सर्ग करने को तत्पर हो गये। तब देवी ने प्रकट होकर अपने भक्त को आत्मघात से रोका। तत्पश्चात विक्रमादित्य ने माधवनल और कामकन्दला के जीवन के साथ यह वरदान भी मांगा कि माँ बगुलामुखी अपने जागृत रूप मे पहाडी मे प्रतिष्टित हो। तबसे माँ बगुलामुखी अपभ्रंश बम्लेश्वरी देवी साक्षात रूप मे डोंगरगढ मे प्रतिष्ठित है।
1. एतिहासिक और धार्मिक नगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है।
15. नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है।
बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ कैसे पहुचे
सड़क मार्ग से: डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था है।
ट्रेन से: अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़। और
फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर। जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
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