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बस्तर महाराज प्रवीर चंद्र भंज देव: छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का वो मसीहा जो राजनीति की भेट चढ़ गया – I

03/01/2023 posted by Priyanka (Media Desk) Chhattisgarh, Tribal Area News and Welfare    

रियासत काल के प्रथम उड़िया और अंतिम काकतिया शासक प्रवीर चन्द्र भंजदेव आधुनिक बस्तर को दिशा प्रदान करने वाले पहले युगपुरुषों में से एक हैं। सन 1947 में भारत की आज़ादी के बाद मध्यप्रदेश के बस्तर क्षेत्र में (उस समय बस्तर मध्यप्रदेश का हिस्सा थी।) राजा प्रवीर चंद्र भंज देव के नेतृत्व में आदिवासी आंदोलन कांग्रेस के लिए चुनौती बनता जा रहा था। वे बस्तर के जनजातीय लोगों के अधिकारों के लिए लड़े। बाद में वे 1957 के आम चुनाव जीतकर अविभाजित मध्य प्रदेश विधान सभा के जगदलपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे अपने लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय थे, क्योंकि उन्होंने स्थानीय जनजातीय का मुद्दा उठाया और इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के शोषण के खिलाफ राजनीतिक नेतृत्व प्रदान किया। भूमि सुधारों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाया और इस प्रकार वे तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस के लोगों द्वारा खतरा माना गया।

25 मार्च 1966 को जगदलपुर में अपने राज दरबार में बैठक कर रहे थे जिसमे बड़ी संख्या में आदिवासी भी शामिल थे, उसी दौरान पुलिस ने राजमहल के भीतर प्रवेश किया और अंधाधुंध गोलीबारी की। इस गोलीकांड में राजा प्रवीर चंद्र समेत कई आदिवासियों की मौत हो गयी थी। मगर आधिकारिक तौर पर राजा समेत 12 लोगो की मौत और 20 लोगो को घायल बताया गया। जबकि पुलिस ने 61 राउंड फायर किये थे।

वे प्रवीर चंद्र ही थे जिन्होंने अंग्रेज शासन द्वारा बैलाडीला की कोयले के खदानों को हैदराबाद के निज़ाम के हाथो सौपने के खिलाफ चुनौती दी थी। राजमहल में घुसकर निहत्थे राजा और आदिवासियों पर पुलिस ने गोलीबारी क्यों की ये आज भी रहस्य है और बर्बरता पूर्ण है। क्या बातचीत से समस्या का हल नही निकल सकता था?

जन्म और प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा

महारानी प्रफ्फुल कुमारी देवी और महाराजा प्रफ्फुलचंद्र भंज देव की द्वितीय संतान प्रवीरचंद्र भंज देव का जन्म शिलॉन्ग में 25 जून 1929 में हुआ था। प्रवीर का राजनैतिक जीवन बाल्याकाल में ही प्रारम्भ हो गया था। प्रवीर को बचपन में ही लन्दन पढ़ने के लिए भेज दिया गया था। उनके पिता प्रफुलचन्द्र की मृत्यु के बाद उनकी माता और बस्तर की महारानी प्रफ्फुल कुमारी देवी का भी रहस्यमयी परिस्थितियों में 28 फरवरी 1936 में लन्दन में मृत्यु हो गई। तब 6 वर्ष की आयु में महारानी के बड़े पुत्र प्रवीर चन्द्र भंजदेव का लन्दन में 28 अक्टूबर 1936 में ही औपचारिक राजतिलक कर दिया गया एवं वे बस्तर के अंतिम शासक रहे।

फोटोः लंदन में बस्तर के महाराजा युवा महाराजा प्रवीर चंद्र भंज देव।

जब वे गद्दी पर बैठे, तब बस्तर के एडमिनिस्ट्रेटर ई. सी. हाइड थे। इनके द्वारा नियुक्त समिति के द्वारा बस्तर का शासन संचालित था। महाराजा प्रवीर की शिक्षा राजकुमार कालेज रायपुर, व इंदौर और देहरादून की मिलेट्री अकादमी में हुई। कर्नल जे. सी. गिप्सन को प्रवीर और उनके भाई बहनो का अभिभावक बनाया गया था।

एक बार की बात है, गिप्सन छुट्टियों में कही बाहर गया हुआ था, तब गौरी दत्त नाम के पैलेस सेक्रेटरी ने प्रवीर की देखभाल की। तब गौरी दत्त ने प्रवीर को भारतीय खाने जैसे दाल, चावल, रोटी, सब्जी खाने की आदत लगा दी। जब गिप्सन वापस आये तो प्रवीर ने भारतीय खाने की जिद की ,तो गिप्सन ने इंकार कर दिया, इतना ही नहीं उसने गली गलोच शुरू कर दी। फिर क्या प्रवीर को गुस्सा आ गया और उन्होंने गिप्सन के मुँह में तमाचा जड़ दिया। यही उनका स्वभाव था और यही से ही प्रवीर के अंदर लड़ने की भावना जगी।

राजनैतिक जीवन

18 वर्ष की उम्र में प्रवीर लन्दन से भारत वापस लौटे। जुलाई 1947 में प्रवीर का राज्याभिषेक कर बस्तर रियासत का राज्याधिकार दे दिया गया (यद्यपि ब्रिटिश शासन द्वारा उन्हें शासनाधिकार नहीं दिया गया।)। उस समय जगदलपुर बस्तर की राजधानी हुआ करती थी। और यही थे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रन्तिकारी गतिविधियों को नेतृत्व कर बाहर स्वतंत्रता सेनानी श्री पी. सी. नायडू। श्री नायडू की  सोडा फैक्ट्री थी जो क्रांतिकारियों का सम्मलेन स्थल और रणनीति बनाने का अड्डा थी। यहाँ से ‘भारत छोडो’ आंदोलन का स्वर मुखर हुआ। निश्चित ही यहाँ विरोध की ऐसी ही अनेक घटनाये हुई होगी, जिसे अंग्रेजो ने कभी जिक्र होने नहीं दिया। प्रवीर अच्छी तरह से समझ गए थे कि अंग्रेज बस्तर जैसे उपेक्षित और प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्य को इतनी आसानी से स्वतंत्र होने नहीं देगी।

और इसी वर्ष 15 अगस्त सन 1947 में देश आज़ाद हुआ और आज़ादी के साथ ही

वर्ष 1947 की शुरुआत से ही रियासतों के शासक तरह तरह के सौदेबाजी और लाभ हानि के मूल्यांकन में लगे हुए थे।  जैसे ही प्रवीर को राजा घोषित किया गया वैसे ही बैलाडीला का जिन्न निकलकर सामने आया। ज्ञात हो कि बैलाडीला में प्रचुर मात्रा में उत्तम श्रेणी के लौह अयस्क के पहाड़ है। इसकी सुचना स्वतंत्र राज्य की चाह रखने वाले हैदराबाद के निजाम को लगी। उसने प्रवीर के सामने तरह तरह के प्रस्तावों और प्रलोभनों की झड़ी लगा दी। यह आर्थिक रुप से भारत या बस्तर रियासत के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। हैदराबाद निजाम अनेक प्रलोभन देकर बस्तर रियासत को अपने पक्ष में करना चाहते थे, लेकिन प्रवीर चंद भंजदेव ने हैदराबाद निजाम की सलाह को ठुकरा दिया।

बस्तर राज्य का पूर्व अंग्रेज प्रशासक और प्रवीर का सरंक्षक गिप्सन निजाम और प्रवीर के बीच मध्यस्तथा की भूमिका में था। ग्रिब्सन ने प्रवीर को मोटी रकम का प्रलोभन दिया तो कभी राज्य के विलयन का डर दिखाकर अपनी ओर करने की कोशिश की। फिरभी प्रवीर टस से मस नहीं हुए। बाद में बैलाडीला का कुछ हिस्सा सशर्त लीज़ पर दे दिया। यह परिवर्तन का दौर था। भारत का इतिहास बदल रहा था।

अंततः अग्रेजो ने 15 अगस्त 1947 भारत की स्वतंत्रता के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। 15 दिसंबर 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में छत्तीसगढ़ की सभी 14 रियासतों के शासको को भारत संघ में शामिल होने का आग्रह किया। महाराजा प्रवीरचंद्र भंज देव ने आदिवासियों के विकास के लिए विलय को स्वीकृति प्रदान करते हुए स्टेटमेंट ऑफ़ सबसेशन पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह 1 जनवरी 1948 में बस्तर के मध्यप्रांत में विलय होने की औपचारिक घोषणा हुई और 9 जनवरी 1948 में बस्तर मध्यप्रांत का हिस्सा बन गया। बस्तर और कांकेर की रियासतों को मिलकर बस्तर जिला अस्तित्व में आया।

यह स्वभाविक था की सत्ता चले जाने के बाद राजा से प्रजा बन जाने की पीड़ा उनके वृत्तियो से झांकती रही। तथापि उम्र के साथ आती परिपक्वता और राजनितिक थपेड़ो ने उन्हें संघर्षशील इंसान बनाया और आगे चल कर वे अंचल के आदिम समाज के वास्तविक स्वर और प्रतिनिधि बनकर उभरे।

महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की कहानी जारी रहेगी…

 

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
"जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।