छत्तीसगढ़ के गौठानों को रोजगार गुड़ी (रीपा) का दर्जा मिलने से यहां तरह तरह के नए-नए उद्यमों की शुरूआत की जा रही है। अब इस कड़ी में एक नई उपलब्धि भी जुड़ने जा रही है। दुर्ग जिले के गौठान में राज्य के पहला बकरी प्रजनन उप-केन्द्र स्थापित किया गया है। यहां उस्मानाबादी बकरों का उत्पादन और प्रजनन भी गौठानों में होगा। जिला प्रशासन और कामधेनु विश्वविद्यालय मिल कर इस नई पहल को अंजाम दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप किसानों की आए बढ़ाने और उन्हें कृषि और उसकी सहायक गतिविधियों को जोड़ने के कार्य किए जा रहे हैं। दुर्ग जिले में उस्मानाबादी बकरों का पालन की फलने-फूलने की संभावना को देखते हुए गौठानों में पालन के लिए पहल की जा रही है। गौरतलब है कि राज्य में 4 लाख पशुपालक बकरी पालन से जुड़े हैं। इस कार्य को पशुपालन विभाग बढाने के लिए उन्नत नस्ल के बकरी पालन के लिए नई-नई सुविधाएं देने का काम कर रहा है।
कामधेनू विश्वविद्यालय के कुलपति डा. दक्षिणकर ने बताया कि उस्मानाबादी प्रजाति की बकरियों की ट्विनिंग रेट अर्थात दो बच्चे देने की क्षमता लगभग 47 प्रतिशत तक होती है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र का क्लाइमेट भी इनके अनुकूल हैं। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी होती है। बेहतर तरीके से पालन हो तो इनकी ग्रोथ काफी तेज होती है। इन बकरियों के प्रजनन क्षमता अधिक होने के कारण पशुपालकों को इससे आय होगी। इसके अलावा स्थानीय नस्ल में सुधार में मदद मिलेगी।
दुर्ग जिले में उन्नत नस्ल के बकरियों के पालन को बढ़ावा देने के लिए कामधेनु विश्वविद्यालय में उस्मानाबादी नस्ल के लिए प्रजनन केन्द्र बनाया गया है। इस ग्रामीण क्षेत्रों में इस नस्ल की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कुर्मीगुंडरा गौठान में प्रजनन उपकेन्द्र बनाया गया है। यहां उस्मानाबादी 25 बकरियों और 2 बकरों की एक यूनिट की पहली खेप भेजी गई है। यहा गौठान समिति बकरियों के प्रजनन का काम काज सीखने के साथ ही इसके पालन का कार्य भी करेगी इस कार्य में विश्व विद्यालय के साथ पशुपालन विभाग तकनीकी सहायत देगी।
कुर्मीकंडरा गौठान में प्रजनन उप केन्द्र बनाए जाने से ग्रामीण पशुपालकों को बकरी पालन के लिए उन्नत नस्ल के उस्मानाबादी बकरे अब उनके गांव में ही उपलब्ध हो सकेंगे। पहले इस नस्ल को बाहर से मंगवाना पड़ता था जो खर्चीला साबित होता था लेकिन अब विश्व विद्यालय में प्रजनन केन्द्र और उप केन्द्र में इस नस्ल के बकरे आसानी से मिल सकेंगे। बकरीपालन से जुड़े विशेषज्ञों ने बताया कि छत्तीसगढ़ में भी अलग-अलग जिलों में अलग-अलग तरह की प्रजाति उपयुक्त होती हैं। उदाहरण के लिए सरगुजा की बात करें तो यहां ब्लैक बंगाल काफी उपयुक्त है। इसी तरह दुर्ग जिले के वातावरण के लिए उस्मानाबादी काफी उपयुक्त है।
उल्लेखनीय है कि एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फार बायोटेक्नालाजी इनफार्मेशन) की एक रिपोर्ट देखें तो सामान्यतः बकरियों में एक बच्चे जन्म देने की दर 61.96 प्रतिशत, दो बच्चे जन्म देने की दर 37.03 प्रतिशत और तीन बच्चे जन्म देने की दर 1.01 प्रतिशत होती है। इस लिहाज से उस्मानाबादी बकरियां गुणात्मक वृद्धि के दृष्टिकोण से काफी बकरीपालकों के लिए काफी उपयोगी साबित होती हैं।
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- "जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।
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