दिनांक : 24-Apr-2024 05:39 AM
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रायपुर : स्वावलंबी गौठान स्वयं की राशि से खरीदने लगे हैं गोबर

रायपुर : स्वावलंबी गौठान स्वयं की राशि से खरीदने लगे हैं गोबर

Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में शामिल सुराजी गांव योजना के तहत निर्मित गौठान तेजी से स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं। राज्य में अब तक 3006 गौठान स्वावलंबी हो चुके है। स्वावलंबी गौठान अब स्वयं की राशि से गोधन न्याय योजना के तहत गोबर की खरीदी करने लगे हैं। स्वावलंबी गौठानों में अपनी स्वयं की राशि से 13 करोड़ 18 लाख रूपए का गोबर क्रय किया है। स्वावलंबी गौठानों की संख्या राज्य में निर्मित एवं संचालित गौठानों की संख्या के एक तिहाई से भी अधिक है। राज्य में 8366 गौठान निर्मित एवं संचालित हैं। रायगढ़ जिले में सर्वाधिक 279 गौठान स्वावलंबी हुए है। दूसरे नंबर राजनांदगांव जिले में 221 तथा तीसरे क्रम जांजगीर-चांपा जिला है, जहां 190 गौठान स्वावलंबी हुए हैं। कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार गरियाबंद जिले में 26, धमतरी में 130, बलौदाबाजार में 101, महासमुंद में 170 तथा रायपुर जिले में 85, कबीरधाम...
रायपुर : नरवा विकास से जल-जंगल और जैव विविधता के संरक्षण को मिली मजबूती

रायपुर : नरवा विकास से जल-जंगल और जैव विविधता के संरक्षण को मिली मजबूती

Chhattisgarh, India
मुख्यमंत्री श्री बघेल आज राजधानी स्थित अपने निवास कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैम्पा मद से नरवा विकास योजना के अंतर्गत वर्ष 2021-22 के लिए 392 करोड़ 26 लाख रूपए की स्वीकृत राशि के 37.99 लाख भू-जल संरक्षण संबंधी संरचनाओं का भूमिपूजन के बाद कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इसके तहत राज्य के वनांचल स्थित एक हजार 962 नालों में भू-जल संरक्षण संबंधी विभिन्न संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। इससे क्षेत्र के 8 लाख 17 हजार हेक्टेयर भूमि उपचारित होगी। मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में नरवा विकास योजना शासन की एक महत्वपूर्ण योजना है, जो वनों के संरक्षण, भू-जल संवर्धन तथा जैव विविधता संरक्षण के साथ-साथ आदिवासियों, वनाश्रितों और किसानों के जीवन से सीधे जुड़ी हुई है। इस योजना के माध्यम से वनांचल में कृषि और वनोपज के उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में नरवा ...
विशेष लेख : गोधन न्याय योजना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजोए रखने का मार्ग प्रशस्त हुआ…

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Tribal Area News and Welfare, Vishesh Lekh
अपनी परंपरा की समृद्ध सांस्कृतिक समझ उज्जवल भविष्य का नींव भी तैयार करती है। परंपरा अपने परिवेश की समझ के आधार पर तैयार की गई है। कृषि प्रधान संस्कृतियों के विकास में गोधन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है और हमारे पूर्वजों ने इसे समझते हुए गोधन का उपयोग आर्थिक विकास के लिए पूरी तौर पर किया। अन्नदा, वन्नदा, सुखदा की आवधारणा को लेकर चलते हुए उन्होंने प्रकृति को सहेजते हुए जैविक खेती अपनाई, गोबर खाद का प्रयोग किया। पंचगव्य का प्रयोग कीटनाशक की तरह फसलों की रक्षा के लिए किया। कृषि को संरक्षण प्रदान करने के लिए इसकी अभिवृद्धि के लिए इन्होंने संसाधन स्थानीय परिवेश से ही लिए। यही वजह है कि सैकड़ों वर्षाें से अन्न देने वाली छत्तीसगढ़ की धरती कभी वंध्या न हुई। रासयनिक खादों के बढ़ते प्रयोग ने भूमि पर दबाव डाला और इसकी उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे क्षरित होने लगी है। इन सभी बातों को भली-भांती समझते हुए प्र...