भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। आज उनकी 126वीं जयंती है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। इसके लिए वे तानाशाह कहे जाने वाले एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) से भी मिले थे। एडोल्फ हिटलर और बोस की पहली मुलाकात का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं।
नेताजी ने कैसे पहचाना एडोल्फ हिटलर (Adolf ‘Hitler) को?
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जब पहली बार एडोल्फ हिटलर से मिलने गए तो उन्हें एक कमरे में बैठाया गया। हिटलर ने अपनी सुरक्षा के लिए कई अंगरक्षक रखे थे, उनमें से कुछ बिल्कुल हिटलर की तरह ही दिखते थे। ताकि लोगों को धोखा हो जाए। जब नेताजी कमरे में बैठकर हिटलर का इंतजार कर रहे थे तो कुछ देर बाद एक व्यक्ति उनके पास आया, जो दिखने में बिल्कुल हिटलर की तरह था।
उसने हाथ बढ़ाया और कहा- मैं हिटलर … नेताजी ने भी हाथ बढ़ाया और कहा मैं सुभाष भारत से .. मगर आप हिटलर नहीं हैं। नेताजी की बात सुनकर वो व्यक्ति एकदम चौंक गया और वहां से चला गया।
थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी जो हूबहू हिटलर की तरह ही रोबीला था, नेताजी के पास आया और हाथ आगे बढ़ाकर बोला- मैं हिटलर …नेताजी ने फिर हाथ मिलाया और कहा- मैं सुभाष …भारत से …मगर आप हिटलर नहीं हो सकते। मैं यहां केवल हिटलर से मिलने आया हूं।
तीसरी बार फिर से एक व्यक्ति ठीक उसी तरह की वेश भूषा में आकर नेताजी के पास खड़ा गया। उसने कुछ भी नहीं कहा। इस बात नेताजी बोले- मैं सुभाष हूं … भारत से आया हूं .. पर हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें चूंकि मैं मित्रता के बीच में दीवार नहीं चाहता।
हिटलर बहुत कठोर व्यक्तित्व के माने जाते थे। उसके सामने इतनी हिम्मत से बोलने वाले बहुत कम लोग होते थे। नेताजी की हिम्मत भरी बात सुनकर और तेज भरा चेहरा देखकर हिटलर ने अपने दस्ताने उतार दिए और हाथ मिलाया।
हिटलर ने जब नेताजी से पूछा कि- आपने मेरे हमशक्लों को कैसे पहचाना तो नेताजी ने कहा कि- आपसे पहले जो लोग आए थो उन्होंने आते ही मुझसे हाथ मिलाया, जबकि कोई व्यक्ति अगर किसी के घर मिलने जाता है तो जाने वाला पहले हाथ बढाता है …अपना परिचय देता है न कि घर के मालिक को पहले हाथ बढ़ाना चाहिए। नेताजी की बात सुनकर हिटलर भी उनकी बुद्धिमानी का कायल हो गया।
जब आपके सामने कोई परेशानी आए तो जरूरी नहीं कि उसका हल निकालने के लिए आपको बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी या सोच-विचार करना पड़े। छोटी सी समझदारी से भी उस समस्या का समाधान हो सकता है।
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- "जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।
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