घर में एक गाय थी, उसे रोज देखते थे
घर के पास नदी थी, उसे भी देखते थे
गाय नदी जैसी थी, सतत दूध देती थी
नदी गाय जैसी थी, सतत जल देती थी
भरपूर दूध पिया, पेट भर गया,
भरपूर पानी पिया, जी भर गया,
अब गाय का दूध सूख चुका है
अब नदी का जल सूख चुका है।
बेशक मैं अपराधी हूँ,
चाहे जो सजा दो
लेकिन मुझसे यह न कहो
कि गाय पर निबन्ध लिखो
या नदी पर कविता लिखो।
अब नहीं लिख सकता मैं
बचपन की बात और थी।”
-द्वारिका प्रसाद अग्रवाल