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विदेशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार : अरुण कुमार मिश्रा

11/11/2022 posted by Priyanka (Media Desk) Vishesh Lekh    

हिन्दी भाषा की अविरल धारा शताब्दियों से प्रवाहित हो रही है। इसने उत्पत्ति एवं विकास की लंबी प्रक्रिया को पार किया है। आज हिन्दी तेजी से भारतीय समाज के बीच संपर्क भाषा के रूप में विकसित हुई है एवं विदेशों में भी भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। विश्व में हिन्दी का स्थान उसकी समाहार शक्ति एवं विशालता के कारण है। भारतीय मूल के लोग पूरी दुनिया में फैले हैं।

मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद एवं फ़िजी जैसे देशों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या अच्छी-ख़ासी है। इसके अतिरिक्त अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड एवं कई यूरोपीय देशों में भी हिन्दी बोलने एवं समझने वालों की पर्याप्त संख्या है। इन देशों से कई हिन्दी पत्र एवं पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन भी होता है।

19 वीं सदी में बिहार एवं उत्तर प्रदेश से पहुंचे बंधुआ मजदूरों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मॉरीशस में हिन्दी भाषा एवं भारतीय संस्कृति को बरकरार रखा। मॉरीशस में ही आगे चलकर विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना हुई। इसी तरह फ़िजी में भी भारतीय मूल की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है। फ़िजी में भी गिरमिटिया मजदूर के तौर पर पहुंचे भारतीयों ने ही हिन्दी का दीपक प्रज्ज्वलित रखा।

1991 में भारत में नई आर्थिक नीति लागू हुई एवं आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इसके पश्चात विदेशों में हिन्दी को महत्व मिलने की प्रक्रिया में तीव्रता से इजाफा हुआ। विदेशी कंपनियों को भारत एक विदेशी बाजार के रूप में प्रतीत हुआ एवं उन्हें ऐसे लोगों की आवश्यकता महसूस हुई जो उनके उत्पाद एवं सेवाओं को जन-जन तक पहुंचा सकें एवं इसके लिये उन्हें हिन्दी की आवश्यकता महसूस हुई। इसे तथ्य की दृष्टिगत रखते हुये भी कई विदेशियों ने हिन्दी सीखने में रुचि दर्शाई।

पहले विदेशों में हिन्दी मात्र एक विदेशी भाषा की जानकारी के बतौर सीखी जा रही थी तथा धर्म एवं आध्यात्म में रुचि रखने वाले संस्कृत के प्रति झुकाव रखते थे। किन्तु अब स्थिति बदल चुकी है। अब आधुनिक भारत एवं उसके ज्ञान के स्रोतों से लाभान्वित होने के लिये विदेशी हिन्दी सीख रहे हैं। कई विदेशी विद्वानों ने हिन्दी में लेखन कार्य कर अपनी पहचान बनाई है। भारतीय हिन्दी फिल्में भी विदेशों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।

विदेशों में हिन्दी पहुँचाने में इनकी भूमिका को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। विदेशी प्रसारण सेवाओं, हिन्दी वेब पोर्टल, ओटीटी प्लेटफार्म के माध्यम से भी हिन्दी विदेशों में प्रचारित हुई। इसके अतिरिक्त विदेशों में रहने वाले भारतीय नियमित रूप से हिन्दी कवि सम्मेलन एवं हिन्दी काव्य गोष्ठियों का आयोजन करते हैं। विशेषकर अमेरिका एवं ब्रिटेन में रहनेवाले प्रवासी भारतीयों का इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है एवं कविता रूपी इस माध्यम की भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।

आज ऐसे विद्वानों की नई पीढ़ी पदार्पण कर चुकी है जो विदेशी होने के बावजूद हिन्दी में उच्चकोटि का सृजनात्मक लेखन कर रही है। निःसन्देह इससे हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति लगातार समृद्ध हो रही है। आज इंटरनेट पर हिन्दी का प्रयोग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह संख्या आज करोड़ों में है एवं यह हिन्दी की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के ही बदौलत है।

विश्व के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में आज हिन्दी का अध्ययन एवं अध्यापन होता है। कैंम्ब्रिज, पेइचिंग, टोक्यो, ऑक्सफोर्ड, येले, विनकांसन जैसे विश्वविद्यालय इनमें से प्रमुख हैं। विश्व के 30 देशों के 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी नियमित रूप से पढ़ाई जा रही है। आज प्रबंधन के क्षेत्र में जुड़े लोगों के लिये हिन्दी शिक्षण से संबन्धित विशेष कोर्स तैयार किए जा रहे हैं। भारत में व्यापार करने वाली विदेशी कंपनियों को अक्सर हिन्दी के आधुनिक स्वरूप से परिचित लोगों की आवश्यकता पड़ती है।

वर्ष 2006 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने नेशनल सिक्योरिटी लेंगवेज़ इनिशिएटिव नामक भाषा नीति की घोषणा की थी जिसमें सरकारी विद्यालयों के विदेशी भाषा शिक्षण में हिन्दी सहित दस विदेशी भाषाओं के लिये प्रोत्साहन की घोषणा की गई थी। हिन्दी के अलावा इस नीति में सम्मिलित अन्य भाषाएँ थीं – अरबी, चीनी, उर्दू, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली, स्वाहिली, रूसी एवं दरी। सर्वप्रथम स्टारटॉक के नाम से यह कार्यक्रम 2007 में चीनी एवं अरबी में शुरू हुआ। तत्पश्चात 2008 में हिन्दी, उर्दू एवं फारसी भी जोड़ी गई। अमेरिका में स्टारटॉक का यह कार्यक्रम अत्यंत प्रभावशाली रहा।

इससे हिन्दी की स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ। यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि हिन्दी का चयन अमेरिका द्वारा भारत के साथ बढ़ते आर्थिक सम्बन्धों को दृष्टिगत रखते हुये किया गया था तो कुछ अन्य भाषाएँ अमेरिका द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से सम्मिलित कि गई थी। आर्थिक रूप से मजबूत होते देशों की भाषा एवं संस्कृति को स्वीकारना जहां हमारी दृष्टि से सुखद है वहीं अमेरिका के लिये यह दूरदृष्टि का प्रतीक है।

विदेशों में कई गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं भी हिन्दी सहित भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। भाषा  एवं संस्कृति में अटूट संबंध है। भारतीय संस्कृति को समझने के लिये भारतीय भाषा ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। यह अन्योन्याश्रित संबंध है जिसमें एक के बिना दूसरे के आस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

किन्तु चुनौतियाँ आज भी कम नहीं हुई हैं। अमेरिका के उच्च शिक्षण संस्थाओं में आज भी चीनी एवं जापानी भाषा पढ़ने वालों की संख्या हिन्दी के मुक़ाबले बहुत ज्यादा है। हिन्दी भी सर्वोच्च स्थान अर्जित कर सके इसके लिये जरूरी होगा प्रवासी भारतीयों में हिन्दी को लेकर आत्मगौरव का भाव तथा भारत द्वारा भी इन कार्यों को भावनात्मक एवं आर्थिक समर्थन। हमें अँग्रेजी का मोह छोड़ना पड़ेगा एवं हिन्दी के प्रति जारी उदासीनता के रुख में शीघ्र परिवर्तन लाना होगा।

निःसंदेह हिन्दी क्षमता से लवरेज है। वह विश्वभाषा एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनने का माद्दा रखती है, किन्तु हमें हिन्दी को वैश्विक परिपेक्ष्य पर समर्थन दिलाने के लिये समयानुकूल उपाय करने होंगे। आज भी विदेशी भाषा-भाषियों में अपनी भाषा को लेकर जो आत्मगौरव एवं स्वाभिमान की अनुभूति है उसके समक्ष हिन्दी भाषी कहीं नहीं ठहरते। बहुतेरे अवसरों पर भारतीयता के प्रचार-प्रसार में भारतीय ही पिछड़ते प्रतीत होते हैं। इन स्थितियों पर आज व्यापक मंथन की आवश्यकता है।

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Priyanka (Media Desk)
Priyanka (Media Desk)प्रियंका (Media Desk)
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