
जन्म एवं किशोर अवस्था – पश्चिम बंगाल (वर्ष 1958-वर्ष 1992)
वर्ष 1958 स्वर्गीय श्री भरत दुदानी (उर्फ़ भरतिया उर्फ़ मामाजी) सुपुत्र स्व. भगवानदास दुदानी का जन्म बराकर जिला बर्धमान पश्चिम बंगाल के दुदानी परिवार में हुआ। वे बराकर के जाने माने अग्रवाल मारवाड़ी घराने से संबंध रखते थे। 4 भाई और 7 बहनो में सबसे छोटे संतान थे। इनके पिता स्व. भगवानदास दुदानी जी जब भरत दुदानी जी 5 वर्ष के थे तब एक सड़क हादसे में गुजर गए थे। फिर इनका भरण पोषण लालन पालन इनके भाइ-बहनो ने, बाद में भाभियों ने किया।
वे स्वभाव से एक दम चंचल और कर्म से निष्ठावान थे। इनके मित्र इन्हे प्यार से भरतिया बुलाया करते थे। स्कूल-कॉलेज की शिक्षा इनकी बंगाल में ही संपन्न हुई। 22 वर्ष की किशोर अवस्था में आते आते इन्होने व्यापार के दावपेंच भी अपने आप ही सीख लिए थे। वर्ष 1985 में वे बराकर बस स्टैंड पर स्तिथ अपने बड़े भाई के द्वारा स्थापित हार्डवेयर दुकान सँभालते थे।

इनका विवाह वर्ष 1986 में रजनी पिलानीवाला से हुआ। वर्ष 1987 इन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र का नाम परिवार ने बिशेष रखा फिर वर्ष 1989 में इन्हे दुबारा पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, उनका नाम जितेश रखा गया। वर्ष 1992 इनके बड़े भाइयो ने षड्यंत्र करके दुकान के हिसाब में रुपये की चोरी का आरोप लगा कर इन्हे प्रताड़ित करना शुरू किया। संयुक्त परिवार का विभाजन हो गया था, रोज-रोज की मानसिक प्रताड़ना से परेशान हो कर भरत दुदानी जी उर्फ़ भरतिया भरी रात को अपने दोनों बच्चो लगभग 5 वर्ष एवं पत्नी के साथ भीलवाड़ा राजस्थान को एक हज़ार की नौकरी के भरोसे कूच कर गए। वे जानते नहीं थे विभाजन में भी इनके भाइयो ने इनके लिए कुछ नहीं छोड़ा था, बिचारे सबसे छोटे थे थोड़े नासमझ थे तो सबके सब फायदा उठाते गए।
जीवन की भागदौड़ : भीलवाड़ा राजस्थान (वर्ष 1992 से वर्ष 1999)
भीलवाड़ा में भरतिया का जीवन बड़ा भागदौड़ वाला रहा, सब कुछ शून्य से जो शुरू करना था। वे पेंट और शर्ट पीस जैसे विमल आदि कंपनियों के सैंपल इत्यादि ले कर कभी पटना, कभी कोलकाता कभी उतर प्रदेश आदि शहरो में घूमते फिरते रहते थे ताकि कोई आर्डर मिल जाये तो अच्छा कमीशन आ जायेगा।
वर्ष 1992 से लेकर वर्ष 1999 तक इन सात वर्ष वे ट्रैन के धक्के खाते रहे कभी परिवार एवं बच्चो का सुख इन्हे नसीब ना हुआ। इतने संपन्न परिवार होने के बावजूद बड़े भाइयो के कारण इन्हे दर दर की ठोकरे खानी पड़ी। वे चाहते तो अच्छे से बटवारां करते इन्हे कुछ जायदाद मिलती तो व्यापार कर लेते थे। वर्ष 1999 में इनके भागीदारों ने इनके साथ धोखा किया फिर वे परिवार के साथ सूरत को निकल गए।
संघर्ष की तपन : सूरत, गुजरात (वर्ष 1999 – वर्ष 2006)
1999 में सूरत में बड़े भाई ने उन्हें अपने पास बुलाया और साथ में एक दूकान शुरू की, जबकि इन्हे इनके जायदाद का हिस्सा देना चाहिए था ताकि वे स्वयं का व्यापार कर सके। बाद में वो दूकान नकदी संकट के कारण चल नहीं पायी फिर 2002 में भरतिया बेरोजगार हो चले थे। बड़े भाई पुणे चले गए। दोनों बेटे एक निजी स्कूल में पढ़ते थे। बड़े पुत्र बिशेष को स्कूल की तरफ से दसवीं तक मुफ्त शिक्षा की स्कालरशिप मिली थी।
घर की माली हालात इतनी ख़राब थी की एक बार इन्होने 10 रुपये की जहर की शीशी खरीद ली थी और पत्नी को रात के खाने में मिलाने को कहा। पर कहते है जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोई। इनकी माताजी सरस्वती दुदानी जी साक्षात प्रकट हुई और इन्हे फ़ौरन अपनी गलती का एहसास हुआ। इन्होने शीशी नाली में बहा दी।
फिर वे वर्ष 2006 तक सूरत में सूट दुप्पटा कपड़ा आदि का छोटा मोटा ब्रोकर का व्यापार करने लगे। सारा दिन बाइक से इधर उधर घूमना आर्डर लेना फिर घर में आना। 2006 में सूरत की बाढ़ में कपड़े व्यपारियों को खूब नुकसान हुआ तो इनका ब्रोकर का व्यापार भी चौपट हो गया। कुछ व्यापरियों ने इन पर फिर धोखधड़ी का झूठा आरोप लगा दिया, मजबूरन उन्हें पुणे में उसी बड़े भाई के पास मदद मांगने गए। परिवार इनका कुछ वक्त के लिए जयपुर में था, क्यूंकि इनके बड़े पुत्र बिशेष दुदानी तब जयपुर में इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे।
पत्रकार एवं प्रबंधन रायपुर छत्तीसगढ़ (वर्ष 2006 से 30 अप्रैल 2021 स्वर्गवास तक)
कहते है भगवन के घर देर है पर अंधेर नहीं, पुणे में इनके बड़े भाई के यहां इनकी अचानक से एक विशेष शख्श से मुलकात जो रिश्ते में इनके भांजे लगते है रायगढ़ से तालुक रखते है नाम है उनका श्री नवनीत जगतरामका जी, वे दैनिक इस्पात टाइम्स अख़बार के स्वामी एवं प्रधान संपादक है। इन्होने उन्हें रायपुर आने और अख़बार में नौकरी का प्रस्ताव दिया। यहां बड़े भाई को जायदाद में हिस्सा देने का एक और मौका मिला था पर षड्यंत्रकारी दिमाग कभी ठिकाने पे लगा है क्या?
वर्ष 2006 दिसंबर माह में रायपुर में श्री भरत दुदानी जी का आगमन हुआ, नवनीत जी ने सबसे इनका मेरे मामाजी है बोलके परिचय करवाया।
फलस्वरूप वे मामाजी के नाम से पुरे पत्रकार संघ में प्रख्यात हो गए, इन्होने पत्रकारिता एवं प्रबंधन में भी महारत हासिल की। वे वर्ष 2013 सें रायपुर जिलेस्तर के छत्तीसगढ़ शासन से अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार थे। वर्ष 2020 में इनके पुत्र बिशेष दुदानी सारा कार्य देखने लगे थे।
दिनांक 30 अप्रैल 2021 को शाम 4:30 बजे इनके मनोबल ने जवाब दे दिया और कोरोना में ह्रदियगति रुक जाने के कारण गोलोकवास कर गए। उस दिन की भयावह घटना में बताना नहीं चाहता और ना ही आप सुनना चाहेंगे।
उनका हमेशा से रिटायर हो कर छत्तीसगढ़ के एक फार्म हाउस में रहने की मनोकामना थी। जो इनके पुत्र ने जैसे-तैसे तिल्दा रायपुर में एक फार्म हाउस खोज कर किराये में लेकर पूरी की। कौन जानता था कि ये इच्छा अंतिम रह जाएगी।

मामाजी का चंचल और मित्रत्व
मामाजी सबकी मदद किया करते थे और लोग इनसे बखूबी मदद भी लेते थे। प्यार से मैं इन्हे भोले भंडारी बुलाया करता था, जो आये भोलेपन का फायदा उठा के चला जाये। हम पिता पुत्र में हमेशा से मित्र के जैसा संबंध रहा। वर्ष 2013 में मैं कोलकाता से इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर रायपुर वापस चला आया था। इन्हे अखबार सँभालने में सहायता करता रहा और साथ में छत्तीसगढ़ रोजगार प्लेसमेंट एजेंसी का व्यापार भी किया। हम दोनों पिता पुत्र का सम्बन्ध जैसे धुप में परछाई वे जहां जाते साथ में मेरा जाना तय ही था। चाहे जनसंपर्क हो, संवाद हो या कोई जरुरी मीटिंग।
दूरदर्शी एवं खुले विचार के व्यक्तित्व
वर्ष 2015 में मैंने अपने पिता से प्रियंका से विवाह करने की इच्छा जताई, प्रियंका भी मेरे जैसे ही इंजीनियरिंग पास छत्तीसगढ़ से एक दूसरे समाज से आती थी। मेरे पिता तो दूरदर्शी एवं खुले विचार के व्यक्तित्व के स्वामी थे इन्होने मेरे विवाह पर मुहर लगाई और वर्ष 2018 हम तीनो ने गोंडवाना एक्सप्रेस न्यूज़ पोर्टल की नीव रखी। ससुर और पुत्रवधु जैसा कभी रिश्ता ना रखा ना लगा एक दम पिता पुत्री समान रहते थे दोनों।

पिता का स्मरण और छत्तीसगढ़ शासन को आभार
मेरे पिता, मेरे मित्र मैं आज भी जब शाम 5 बजे की चाय पीता हूँ, आपको अक्सर याद करता हूँ. आपके जीवन मंत्र जैसे जिंदगी हो तो जिंदादिल इस पर बखूबी अमल भी करता हूँ. मैं अंत में छत्तीसगढ़ शासन, संवाद, जनसंपर्क आदि और मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी का तहे-दिल से आभार प्रकट करता हूँ कि दुःख की इस घड़ी में आपने हमारी भरपूर सहायता की है। सितम्बर 2021 माह में आपने हमारे परिवार को मुख्यमंत्री निवास में आमंत्रित करके मेरे पिता भरत दुदानी जी को जब मामाजी के नाम से जब संबोधन किया तो आंसू की धरा भह निकली थी। ये खबरे पढ़े, क्लिक करे
मामाजी के महशुर हास्य किस्से
पिछले जन्म की याद
मामाजी को अपना पिछले जन्म याद था, उनके कहेनुसार वे दिल्ली के एक किसान के पुत्र हुआ करते थे और खेती करते वक़्त उन्हे सांप ने काटा था जिससे उनकी मृत्यु हुई थी। जब 4 वर्ष के थे अपने पिता भगवान दास दुदानी एवं माता सरसवती दुदानी के साथ वैष्णो देवी यात्रा करके लौट रहे थे जब कार दिल्ली से गुजरी तो उन्हें अपना पिछले जन्म का घर, परिवार सब याद आ गया था। वे उन्हें मिले भी थे पर हमारे दादा दादी ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें बंगाल ले फिर उम्र के साथ वो दिल्ली के परिवार को भुलते गए।
ओ राजू, ओ राजू, ओ रजू
सूरत में हमारा परिवार एक दो मंजिला मकान के भूतल में किराये से रहते थे, प्रथम तल पर मकान मालिक का परिवार रहता था। मकान मालिक का नाम राजन ठक्कर उर्फ़ राजु था।
हमारे और उनके बीच बड़ा ही घना और मधुर संबंध था, उन दिनों हेराफेरी की पहली मूवी आयी थी और बाबूराव का चरित्र हमारे मामाजी को बहुत भा गया था, उन्हें रोज मस्ती सूझती रहती थी। जैसे ही रात के 12 बजे बजते जोर जोर से अपने कमरे से बाबूराव की स्टाइल में ओ राजू, ओ राजू, ओ रजू की टेर लगाया करते थे। कितने नटखट थे।
बेटे को नदी की डुबकी
एक बार मामाजी उर्फ़ भरत दुदानी जी जब किशोर अवस्था में थे तब मैं यानी उनका पुत्र बिशेष दुदानी 4 वर्ष बरकार नदी में रोज उनके साथ नहाने की जिद करता था। एक बार वे मुझे सुबह सुबह साथ ले गए और बदमाशी से नदी में उतर के 3-4 डुबकी अंदर तक लगा दिए। मैं रोता रोता घर को भागा था फिर पानी का जो डर मन में बैठा क्या बताऊ। काफी सालो बाद टूट फुट तैरना सीख पाया हूँ, पर पानी-जहाज का फोबिया अभी तक कायम है। धन्य है पिता दानेश्वर, मेरे भोले भंडारी।
लेख का यही अंत करता हूँ बाकि मामाजी के किस्से आपको आगे भी सुनाता रहूँगा।
तब तक जय जय.
Author Profile
- बिशेष दुदानी रायपुर में निवास करते है, इन्होने ने Btech IT की डिग्री की है, वेब डेवलपमेंट और पत्रकारिकता में रूचि है। दैनिक इस्पात टाइम्स रायपुर एवं रायगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार है और गोंडवाना एक्सप्रेस में सह-संपादक/प्रबंधक की भुमिका निभा रहे है।
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