दिनांक : 18-Apr-2024 02:31 AM
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लेखक: Dwarka Prasad Agarwal

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के निवासी, मूल रूप से व्यापारी, गद्य एवं पद्य लेखन में रूचि. व्यक्तित्व विकास तथा व्यवहार विज्ञान के प्रशिक्षक, अब तक ११ पुस्तकों के लेखक.
‘नदी पर कविता लिखो’ जैसा कभी गुरूजी ने कहा था ‘गाय पर निबन्ध लिखो’

‘नदी पर कविता लिखो’ जैसा कभी गुरूजी ने कहा था ‘गाय पर निबन्ध लिखो’

Vishesh Lekh
घर में एक गाय थी, उसे रोज देखते थे घर के पास नदी थी, उसे भी देखते थे गाय नदी जैसी थी, सतत दूध देती थी नदी गाय जैसी थी, सतत जल देती थी भरपूर दूध पिया, पेट भर गया, भरपूर पानी पिया, जी भर गया, अब गाय का दूध सूख चुका है अब नदी का जल सूख चुका है। बेशक मैं अपराधी हूँ, चाहे जो सजा दो लेकिन मुझसे यह न कहो कि गाय पर निबन्ध लिखो या नदी पर कविता लिखो। अब नहीं लिख सकता मैं बचपन की बात और थी।" -द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ...
विशेष लेख : हमारा तन : द्वारिका प्रसाद अग्रवाल की कलम से

विशेष लेख : हमारा तन : द्वारिका प्रसाद अग्रवाल की कलम से

Vishesh Lekh
बचपन से अब वृद्धावस्था तक खाते-पीते-जीते गुजर रहा है. पीछे मुड़ कर देखने का मन होता है कि आखिर कैसे गुजरा? ऐसा लगता है कि सब कुछ अपने-आप होता गया और मैं यहाँ तक पहुँच गया. जैसा मेरा पारिवारिक माहौल था, वैसे खाने-पीने की आदतें विकसित हुई. क्या खाने से फायदा है या खाने से नुकसान, इसे बचपन से अब तक सुनते चले आ रहा हूँ लेकिन सुनता भर हूँ, जो मन आता है या जो मिल जाता है, उसे खा लेता हूँ. उबला हुआ भोजन अरुचिकर लगता है, वहीँ पर तला हुआ भोजन या नमकीन या मिठाई देखकर खुद पर काबू पाना मेरे लिये दुष्कर है. आग्रह का कमजोर हूँ इसलिए कोई यदि प्रेम से अधिक खिलाता है तो मना नहीं कर पाता, क्या करूं? धार्मिक और संस्कारी परिवार में जन्म हुआ इसलिए बुरी आदतों की ओर आकर्षण कम ही बना लेकिन तम्बाखू खाना सीखा क्योंकि मेरे वरिष्ठ भी इनका उपयोग करते थे. बीड़ी-सिगरेट के धुएं की सार्वजनिक गंध जानता हूँ लेकिन व्यक्तिगत...